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जिलेमें पहुँचोगे तब तुमको मजिस्ट्रेटके सामने वोरी स्वीकार करनी होगी । यदि तुम अपराध अस्वीकार करोगे तो मुझको तुम्हारे विरुद्ध झूठा प्रमाण तैयार करके भेजना होगा ।" रामेश्वर स्वीकारता सूचक गर्दन हिलाकर वहाँसे चल - दिया । घर जाकर उसने वे पचास रुपये गिनकर अपनी स्त्रीके हाथमें रख दिये । हाथमें रुपये लेकर पार्वती बोली कि ये रुपये आपने कहाँसे पाये ? रामेश्वरने सब हाल विस्तारपूर्वक
कह डाला ।
इस बात को सुनते ही पार्वतीने रुपयोंको दूर फेंक कर स्वामीके दोनों पैर पकड़ लिये और आँखों में आँसू भरकर ऊपरको मुख उठाकर कहना आरंभ किया - " ऐसा काम कभी मत करना, इन सत्यानाशी रुपयोंके लिए अपने आपको क्यों कैदी बन रहे हो? मैं भीख माँगकर खिलाऊँगी । देखो, ऐसा मत करो। मुझे विदेशमें अकेली छोड़कर न चले जाना । यदि तुम्हें मेरा ख्याल न हो तो न सही, टुक इस बालकके मुखको तो देखो; इस बेचारेका और कौन है ? यदि इसे कुछ हो गया तो मैं कहाँ जाऊँगी और किसके द्वार पर जाकर खड़ी होऊँगी ?” यह कह कर उसने अपने पतिकी छातीमें मुख छुपा लिया और रोना शुरू कर दिया । उस समय लड़का बाहर खेल रहा था; उसने माँकी रोनेकी आवाज सुनी। सुनते ही दौड़ा आया और उसने घबड़ाकर अपने धूल भरे हाथोंको शरीरसे पोंछते पोंछते दोनोंकी ओर देखा अंतमें बोला कि “पिताजी, क्या तुमने अम्माको मारा है ?” यह कहकर उसने माँकी गोद में चढ़ कर उसके मुखका बार बार चुंबन किया और कहा- " माँ तू मत रो, मैं बापको मारूँगा । "
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खूब
इससे पार्वती सब भूल गई, गोद में उठा लिया और कहा
उसने
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जैनहितैषी -
[ भाग १३
इनको मार ।" बालक उतर पड़ा और अपने छोटेसे हाथोंको बापकी पीठ पर यह कह कर मारने लगा कि 'देख यह मारा' और फिर उसी समय गला पकड़कर उनका मुखचुम्बन करने लगा । पार्वती सिखाने लगी ' फिर मार' और बालक उसी समय " फिर मारता हूँ” कहकर अपने अमृतमय हाथोंसे पिताकी पीठमें फिर मारने लगा। इस पवित्र सुखमें न जाने कितना समय बीत गया । रामेश्वर रुपयों को इकट्टा करके खाटपर रख कर चले गये और पार्वती बालकके साथमें अपना जी बहलाती रही !
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उधर रामेश्वरने नायबके पास जाकर कहा'नायब साहब, मेरा चालान करनेमें अब अधिक देर मत करो । देर होनेसे जाने में बाधा आ पड़ेगी । यदि एक बार स्त्रीकी कात - रता और देखना पड़ेगी तो मेरी समझ जाती रहेगी, इस लिए जो कुछ भी करना हो, कर डालो; मैं अभीतक पक्का बना हुआ हूँ।" नायबने घबड़ाकर दारोगा के पास संवाद भेजा । थोड़ी ही देरमें सिपाहियोंने आकर रामेश्वरको घेर लिया और वे उनको जिलेकी ओर ले चले।
अब रामेश्वरको स्मरण आया कि ओह ! मैं जेलखानेको जा रहा हूँ ! उस जेलखानेको ! - जहाँ ब्राह्मणों और स्त्रियोंके हत्यारे और पापी लोग रक्खे जाते हैं; जहाँ डकैत, राहजन और ठग आपसमें बन्धु बनते हैं - उसी जेलको ! जहाँ कि मनुष्य जानवर बनाकर कोल्हूसे बाँध दिये जाते हैं- उसी जेलखानेको ! जहाँ कि बिना जाने पहिचाने ब्राह्मण और मुसल्मान दोनों एक पंक्तिमें खाते हैं; और भंगी, डोम एक ही खाट पर सोते हैं उसी जेलको ! जहाँ न्याय नहीं होता है बल्कि बेतोंसे ठोका पीटी ही हुआ करती है-उसी जेलको ! किस अपराधमें ? अपराध है तो केवल अच्छा जुटता है - स्त्री और
बच्चेको
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यह है कि भोजन नहीं
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पुत्रका बिना अन्न भूखों
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