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________________ ३५ अङ्क१] भाग्यचक। हाईस्कूलमें अध्यापक हैं । हिन्दी अच्छी लिखते भाग्यचक्र। हैं। आपने सागरधर्मामृत और आदिपुराण इन दो ग्रन्थोंके हिन्दी अनुवाद किये हैं । पिछला ग्रन्थ बहुत बड़ा है। [ले., पं. व्रजनन्दनप्रसाद मिश्र और बाबू शंकरलालजी । आप मुरादाबादके पं० रघुनन्दनप्रसाद मिश्र । ] रहनेवाले खण्डेलवालजातीय हैं। अच्छे वैद्य हैं । दो तीन वर्षसे 'वैय' नामक हिन्दी मासिक .. प्रथम परिच्छेद। पत्रका सम्पादन करते हैं । वैद्यके लेख अच्छे जब रामेश्वर शर्मा पचीस वर्षके हुए तब होते हैं । आपने कई वैद्यक-ग्रन्थ भी लिखे हैं। "उनके पिता चल बसे। उनको अपने पिता___ इस निबन्धके लेखक द्वारा पहले पाँच से बड़ा प्रेम था। उनके पिताने मरते समय जो छह वर्ष तक जैनमित्रका सम्पादन हुआ और कुछ भी छोड़ा था, उस सबको उन्होंने पिताके अब लगभग सात वर्षसे जैनहितैषीका सम्पादन हो श्राद्धहीमें लगा डाला। पिताको स्वर्ग मिलनेकी रहा है। नीचे लिखी रचनाओंके सिवाय बहुतसे इच्छासे उन्होंने वे सभी काम किये जो उन्हें जैनग्रन्थों और सार्वजनिक हिन्दी ग्रन्थोंका भी लोगोंने बतलाये । क्रिया समाप्त हो जानेपर जब इसने सम्पादन-संशोधन आदि किया हैं:- नाते रिश्तेके लोग अपने अपने घरों को लौट १ विद्वद्रत्नमाला प्रथम और द्वितीयभाग गये, तब कहीं रामेश्वरको जान पड़ा कि मैं छूछा (इतिहास)। . रह गया । घरवालोंको खिलाना पहिनाना तक २ दिगम्बरजैनग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ । कठिन होगया। उनके घरमें एक दिन उन्हें, उनकी ३ भट्टारक-मीमांसा (आलोचनात्मक निबन्ध)। जबान स्त्री और तीन वर्षके बालक आनन्ददुलोर४ बनारसीदासजीका जीवनचरित। । सबहीको भूखे रहने पड़ा । बालक भोजनके ५ कर्नाटक-जैन-कवि (इतिहास)। लिए रोने लगा और बच्चेका रोना देखकर रामे६ भक्तामरस्तोत्रका पद्यानुवाद और अन्वयार्थ। श्वर शर्माकी स्त्री पार्वती भी रो पड़ी। रामेश्वर , ७ विषापहारका पद्यानुवाद । कुछ खानेके सामानका संग्रह करनेको घरसे बाहर ८ उपमितिभवप्रपंचाकथाके दो भाग ( संस्कृ• गये हुए थे; जब वे निष्फल चेष्टा करके खाली हाथ .. तसे अनुवादित)। लौट आये तो उन्होंने मा-बेटा दोनोंको बाहर ९ पुरुषार्थसिद्धुपायकी हिन्दीभाषाटीका।। द्वार पर खड़े प्रतीक्षा करतेहुए देखा । दरवाजेसे १० ज्ञानसूर्योदयनाटक ( संस्कृतसे अनु०)। कुछ ही दूर पर ब्राह्मण भोजनकी पत्तलें ११ प्राणप्रिय काव्य और (संस्कृतसे )। मिट्टीके जल पीनेके पात्रोंका ढेर लगा हुआ था, १२ सज्जनचित्तवल्लभ काव्य , १३ पुण्यास्रवकथाकोश जिनमें कि गाँवके कुत्ते भोजन खोज रहे थे। , १४ धर्ताख्यान ( गजरातीसे अनवादित )। । बालक बेचारा उधरहीको एकटक देख रहा १५ चरचाशतककी टीका। था। रामेश्वरको देखते ही बालक उनके पासको १६ जान स्टुआर्ट मिलका जीवनचरित । दौड़ आया और पूछने लगा “पिता, हमारे १७ प्रतिभा ( बंगलासे अनुवादित)। लिए क्या लाये ?” रामेश्वरकी आँखों में आँसू १० फूलोंका गुच्छा " छलछला आये; पार्वतीके नेत्रोंमें भी पानी भर १९ दियातले अँधेरा ( मराठीसे)। . आया। उसने जब बालकके मुखको देखा तो आँसू बह निकले-इतनेहीमें जब फिर उसने आँख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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