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________________ अङ्क १] हिन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास । सत्रहवीं शताब्दीके नीचे लिखे कवियोंका हैं । ये भी बनारसीदासजीके समान आध्याउल्लेख मिश्रबन्धुविनोदमें मिलता है:- त्मिक कवि थे । प्रतिभाशाली थे । काव्यकी १ उदयराज जती। इनके बनाये हुए तमाम रीतियोंसे तथा शब्दालंकार अर्थालङ्कार राजनीतिसम्बन्धी फुटकर दोहे मिलते हैं। रचना- आदिसे परिचित थे । बहुतसे अन्तलोपिका, काल १६६० के लगभग । ये बीकानेरनरेश बहिापिका और चित्रबद्ध काव्य भी इन्होंने रायसिंहके आश्रित थे जिन्होंने १६३० से १६८८ बनाये हैं । अनुप्रास और यमककी झंकार भी तक राज्य किया है। इनकी रचनामें यथेष्ट है। २ विद्याकमल । भगवती-गीता बनाया । सुनि रे सयाने नर कहा करै 'घर घर,' इसमें सरस्वतीका स्तवन है । रचनाकाल संवत् तेरो जो सरीर घर घरी ज्यौं तरतु है। छिन छिन छीजै आय जल जैसैं घरी जाय, १६६९ के पूर्व । ताहूको इलाज कछू उरह धरतु है ॥ ३ मुनिलावण्य । 'रावणमन्दोदरी संवाद ' सं० १६६९ के पहले बनाया। आदि जे सहे हैं तेतौ यादिकछु नाहिंतोहि, आनें कही कहा गति काहे उछरतु है। ४ गुणसूरि । १६७६ में 'ढोलासागर' घरी एक देखौ ख्याल धरीकी कहां है चाल, बनाया। घरी घरी रियाल शोर यौं करतु है । ५ लूणसागर । सं० १६८९ में 'अंजनासु- लाई हौं लालन बाल अमोलक, न्दरी संवाद' नामक ग्रंथ बनाया । देखहु तो तुम कैसी बनी है। ऐसी कहूँ तिहुँ लोकमैं सुन्दर, अठारहवीं शताब्दी । और न नारि अनेक धनी है ॥ . १ भैया भगवतीदास ।ये आगरेके रहनेवाले याहीते तोहि कहूँ नित चेतन, थे।ओसवाल जाति और कटारिया इनका गोत्र याहुकी प्रीति जो तोसौं सनी है। था। इनके पिताका नाम लालजी और पिता तेरी औ राधेकी रीझ अनंत, महका दशरथसाहु था । इनकी जन्म और __ सो मोपै कहूं यह जात गनी है।. मृत्युकी तिथि तो मालूम नहीं है; परन्तु इनकी शयन करत हैं रयनमैं, रचनाओंमें वि० संवत् १७३१ से लेकर १७५५ __ कोटीधुज अरु रंक। तकका उल्लेख मिलता है । वि० संवत् १७११ सुपनेमैं दोउ एकसे, ___ वरतें सदा निशंक ॥ में जब पं० हीरानन्दने पंचास्तिकायका अनुवाद दै लोचन सब धरै, किया है, तब भगवतीदास नामके एक विद्वान् मणि नहिं मोल कराहिं। थे। उनका उसमें जिक्र है। शायद वे आप ही हों। सम्यकदृष्टी जौहरी, 'भैया' शायद इनका उपनाम था। अपनी कवि- विरले इह जग माहिं ॥ तामें इन्होंने जगह जगह यही 'छाप रक्खी है। सारे विभ्रम मोहके, . 'ब्रह्मविलास' नामके ग्रन्थमें जो कि छप चुका __ सारे जगतमझार। है. इनकी तमाम रचनाओंका संग्रह है । छोटी सारे तिनके तुम परे, मोटी .सब रचनाओंकी संख्या ६७ है । कोई . सारे गुणहिं विसार ॥ कोई रचनायें एक एक स्वतंत्र ग्रन्थके समान १ आयु । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522830
Book TitleJain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1917
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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