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________________ SARAMMDMINIMILITATILLIDIm विविध प्रसंग। HTRIYERTIFITHHTM ६११ नहीं सोचा जाता कि जो महाशय चुने जाते हैं दिया होगा । फिर भी हम कहेंगे कि पण्डितवे उस कामको अच्छी तरह कर सकेंगे या नहीं, जीने यह भार लेकर अच्छा नहीं किया-ऐसे अथवा उनको काम करनेकी रुचि या अवकाश स्वच्छन्द छात्रों और धर्माध्यापकोंपर शासन भी है या नहीं। इस विषयमें संस्थाके लाभकी करके कीर्ति लाभ करना जरा टेढ़ी खीर है। अपेक्षा खुशामद और चापलूसीकी ओर अधिक या तो पण्डितजीको उनके इच्छानुवर्ती बनकर दृष्टि रक्खी जाती है और ऐसे मौकोंपर खुशा- रहना पड़ेगा, या हर समय स्वयं अलग हो मदा और चापलूसोंकी ही विजय होती है; जानेके लिए तैयार रहना पड़ेगा। मंत्री महाशउनकी ओरसे जिनका प्रस्ताव किया जाता है, यको हम जानते नहीं हैं; पर यह अवश्य कहना वे ही चुनलिये जाते हैं-निष्पक्ष सम्मति देनेवाले पड़ेगा कि मंत्रीका काम किसी काशीनिवासीके मुँह ताकते रह जाते हैं । केवल सभापतियोंके ही हाथमें रहना चाहिए, बाहर रहकर कोई चुनावमें ही यह बात नहीं होती है, अधिष्ठाता मंत्रीका काम अच्छी तरह नहीं कर सकता। मंत्री आदि काम करनेवाले पदोंका चुनाव भी ३ धर्माध्यापककी शक्ति । इसी ढंग पर होता है। सुनते हैं, आनकल विद्यालयके अधिष्ठाता पं० उमरावसिंहजीके लिए पाठशालाके कामों से पं० गणेशप्रसादजी न्यायाचार्य हैं जो काशीमें कि न्यायाचा जो किसीको निकलवाकर अलग कर देना बायें नहीं किन्तु सैकड़ों कोसकी दूरीपर सागर में रहते हाथका खेल है । इस विषयमें वे सिद्धहस्त हैं। हैं । हम उक्त पण्डितजीकी सज्जनता और न्याय- स्या " स्याद्वादविद्यालयकी प्रबन्धकारिणी सभामें ब्र० व्याकरणसम्बन्धी योग्यताको बहुत ही आदरकी भगवानदीनजी और बाबू दयाचन्दजी गोयदृष्टि से देखते हैं, उनकी निस्वार्थ वृत्तिकी भी हम ला लीय बी. ए., ये दो सज्जन बहुत ही योग्य थे; प्रशंसा करते हैं; परन्तु इस बातको माननेके परन्तु सुनते हैं आपने इनपर यह दोष लगालिए हम कदापि तैयार नहीं हैं कि उनमें किसी कर कि ये विधवाविवाहके पोषक हैं, सभासे अभी संस्थाको चलानेकी या अधिष्ठाता बननेकी भी कोई कुछ ही महीने पहले अलग करवा दिया है ! अच्छी योग्यता है । पण्डितजी इतने सीधे और बाबू निहालकरणजी सेठीकी भी यही दशा सज्जन हैं कि वे स्वयं भी किसीसे अपनी प्रबन्ध- हान पर होनेवाली थी। ता० २८ अक्टूबरकी सभामें सम्बन्धी योग्यताका सर्टिफिकेट लेना पसन्द - धर्माध्यायक महाशयने इनको भी अलग कर देनेके नहीं करेंगे । एक सागरकी पाठशाला ही उनके लिए प्रस्ताव किया था और सुबूतमें जैनहितैद्वारा अच्छा तरह नहीं चल रही है जिसका - पीके लेख पेश किये थे; परन्तु उस समय लगभग २५०-३०० रुपये मासिकका खर्च है, आप स्वयं अपराधी थे इस कारण कुछ न कर पर जिसकी ६-७ वर्षों में एक भी रिपोर्ट प्रका ' सके और सभाने आपकी बात पर ध्यान न शित नहीं हुई है। ऐसी अवस्थामें हमें विश्वास दिया । सेठीजीको डर है कि अभी नहीं तो कि उन्होंने काशी पाठशालाके 'अधिष्ठातापने का आगे शीघ्र ही मैं अलग कर दिया जाऊँगा, इस भार अपनी इच्छानुसार कभी नहीं लिया होगा। लिए उन्होंने उपसभापति महाशयकी सेवामें एक अवश्य ही खुशामद और चापलूसी करने. इस्तीफा पेश कर दिया है (जिसकी नकल वालोंने उनके सिर जबर्दस्ती यह भार मढ़ आगे दी गई है)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522829
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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