________________
लड़ना धर्म है या क्षमा भाव रखना ?
कि क्या मनुष्यों में क्षमा, शान्ति आदि सात्विक गुण उत्पन्न करने और उन गुणों को पुष्ट करने के आशयसे ही जैनधर्ममें 'देवपूजा ' नहीं मानी गई है ? यदि यह सच है तो कृपा करके इस पवित्र आशयको निर्मल निष्कलङ्क रहने दो और इन गुणों का आरोपण जिनमें किया गया है उन मूर्तियों के निमित्तसे क्लेश, वैर, क्रोध, आदि तामसिक भावोंको आमंत्रित करनेवाली प्रवृत्ति को रोको–कृपा करके रोको, और किसीके लिए नहीं तो इस आशयकी पवित्रता बनाये रखनेके ही लिए - रोको ।
यदि धर्मकी भावना, भिन्न भिन्न स्वभावों के एकीकरणके लिए, यत्र तत्र एक दूसरेसे डर कर अलग अलग पड़े हुए मनुष्यों को एक 'समाजके' रूपमें संगठित करने के लिए, एक दूसरेसे डरनके बदले एक दूसरेके सहायक बनना सिखाने और एक दूसरे के सुख दुःखमें सहानुभूति रखनेकी शिक्षा देनेके लिए आवश्यक है, तो कृपाकरके इस भावनाको, एक दूसरे के विरुद्ध चलाया जानेवाला हथियार मत बनाओ, एक दूसरेको जुदा करनेवाली खाई मत बनाओ, एक दूसरेको शत्रु मानकर असभ्यता के युगके समान अपनी अपनी दो दो बालिश्तोंकी वृक्षकोटरों में घुस कर रहने की प्रेरणा करनेवाला भयानक साधन मत बनाओ।
क्या आपने 'सबवोंको करूँ शासनरसिक' इस प्रकार की भावना एक 'शासन' (किंगडम्--- समाज - राज्य ) स्थापित करने की इच्छासे नहीं की थी ? तब फिर यदि आप अपने 'शासन' से बाहरके मनुष्यों को अपने शासन के भीतर आकर्षित करके अपना राज्य बलिष्ठ और विस्तृत नहीं बना सकते हैं तो न सही; पर जो आपके ' में हैं, उनको तो बने रहने दो, उनको तो लड़ा झगड़ाकर अलग मत कर दो, अ
"
शासन
Jain Education International
५९१
लग करने की प्रवृत्तिसे तो वाज आओ, कमसे कम इस शासन के स्थापक महागुरु महावीर भगवा - नके पवित्र नाम के लिहाज से ही इसे छोड़ दो ।
सम्पादक महाशय, शायद आप मेरे प्रश्नोंके मारे तंग आ गये होंगे; परन्तु मुझे खेद है कि मैं आपको अब भी छुट्टी नहीं दे सकता । तंग आगये ? नहीं, इस बातको मैं नहीं मान सकता कि आप मेरे प्रश्नोंके मारे तंग आगये होंगे । अपने भाइयोंके साथ तो आप वर्षों तक लड़ते रहने पर भी तंग न आये और मेरे दो चार प्रश्नोंसे ही तंग आ गये ? यदि आप इतने भले होते कि ऐसे मौकोंपर तंग आजाते- ऊब उठते, तो सचमुच ही बहुत अच्छा होता । जो हृदय आपसी लड़ाइयोंसे कठिन पत्थर बन गये हैं वे प्रश्नोंके दो चार बाणों से कभी नहीं छिद सकते । इधर मुझे भी आपकी चलती हुई लड़ाइयाँ देख देखकर बा चलानेका खब्त सबार हो गया है और इससे मैं अभी कुछ और भी प्रश्नबाण छोड़ने के लालचको नहीं रोक सकता ।
"
मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आप इन मुकद्दमोंमें व्यवहार धर्म की रक्षाके लिए देशहितकी बलि नहीं दे रहे हैं ? क्या आप 6: व्यवहार धर्म की रक्षाके लिए समाजबलकी हत्या नहीं कर रहे हैं ? क्या आप ' व्यवहार धर्म' की रक्षा के लिए सदाचारके गले पर छुरी नहीं चला रहे हैं ? और क्या आप " निश्चय ' को लक्ष्यबिन्दु मानकर 'व्यवहार' की पालना करनी चाहिए, " इस शास्त्राज्ञाका दुरुपयोग नहीं कर रहे हैं ?
6
क्या आप इस धर्मात्मापनके दिखाने में ही धर्मात्मापनकी अनुपस्थितिको सिद्ध नहीं करते हैं ? क्या आप अपनी बलिष्ठता दिखलाने के लिए किये जानेवाले इन युद्धों द्वारा ही अपनी धामिर्क निर्बलताको प्रकट नहीं कर रहे हैं ?
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org