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________________ तीर्थोके झगडे मिटानेका आन्दोलन । मुझे चाहे जो उपनाम दिया जावे, परन्तु मैं इस बातको अपनी सारी शक्ति लगाकर जोरके साथ कहूँगा कि जो भारतवासी धनी बनकर उस धनका उपयोग अपने निजी मौज-शौक में और लड़ाई-झगड़े करके देशकी दशा और भी आधिक शोचनीय बनानेमें करते हैं, उनके समान कोई मूर्ख, देशद्रोही और पापी नहीं है और जो लोग धनियों को सर्वोपयोगी धर्मसिद्धान्तों के प्रचार में और देशसेवा के अनेक कामों में धन खर्च करने की सलाह देनेके बदले इस प्रकार के धर्मयुद्धों में तथा आपसी लड़ाई-झगड़ोंमें खर्च करने के लिए उत्ते - जित करते हैं वे मनुष्य जातिके कट्टर शत्रु हैं । ३ अमुक पक्ष न्यायका उल्लंघन कर रहा है, इस प्रकारका दोष किसीको भी नहीं लगाया गया । हमारी अपील में यह कहीं भी नहीं कहा कहा गया है कि दिगम्बरोंने न्यायका उल्लंघन किया है । जो मनुष्य आपसमें फैसला करनेकी सलाह देने के लिए निकला है वह ऐसा कभी कह भी नहीं सकता कि झगड़ा किसने खड़ा किया और अमुक तीर्थका सच्चा हकदार कौन है | किसी प्रकारका आरोप और किसी प्रकारका जजमेंट ( फैसला ) देना उसका काम ही नहीं है । मैंने बड़ी ही सावधानीसे - इस तरहसे कि किसी एक भी पक्ष पर कोई आरोप न आवे - किसी के साथ ग़ैरइन्साफी न हो जाय - तटस्थ होकर अपील की थी कि छद्मस्थ होनेके कारण मनुष्य मात्र भूलका पात्र है । इस लिए एक पक्षसे भूल भी हो सकती है, तो भी दूसरे पक्ष को अपने भाई के साथ लड़ने के बदले आपस में ही समझौता कर लेना चाहिए। मेरा निजी और दृढ अभिप्राय यह है कि जिन शान्तिमय स्थानोंको अगणित आत्माओंके मोक्ष प्राप्त करने के कारण हम पवित्र Jain Education International ५१५ मानते हों उन स्थानों पर, जो जन्म से जैन हैं केवल उन्हींको नहीं किन्तु अन्य लोगों को भी - जो वहाँ आते हैं-दर्शन-पूजन ध्यान करनेका सुभीता होना चाहिए और यदि वे वहाँ दर्शन-पूजन करें तो इससे हमें प्रसन्न होना चाहिए । दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनोंको आपस में सलाह करके ऐसा प्रबन्ध कर डालना चाहिए कि दोनों ही अपनी अपनी पद्धतिसे निर्विघ्नतया पूजापाठ किया करें । परन्तु पूजनकी इस आवश्यकता की ओर और पूजनका अधिकार प्रत्येक मनुष्यको मिलना चाहिए इसकी ओर ध्यान देनेके लिए सरकारी कानूनमें गुंजायश नहीं है। कानून तो पहाड़को एक स्थावर सम्पत्ति मानकर उसका अधिकार किसी एक पक्षको दे देना, बस इतना ही मतलब रखता है । पर यदि हम देशभक्त अगुओं से अपना न्याय करावेंगे, तो वे धर्मको बाधा न पहुँचे और सच्चे हकदारकी मालिकी भी न जाय इन दोनों बातोंका खयाल रखकर कोई अच्छा मार्ग ढूँढ़ निकालेंगे | जिन लोगोंपर कानूनसे लड़नेकी ही धुन सवार है, उन्हें जानना चाहिए कि कानून केवल बुद्धिवादका परिणाम है, उसमें अभीतक धर्मभावनाका मेल नहीं हुआ है । मद्यपान और वेश्यागमन ये दो बहुत ही बड़े अधर्म और अनर्थ हैं, तो भी बुद्धिवादसे तैयार किया गया सरकारी कानून न वेश्याके धंधेको बन्द करता है और न शराब बेचना बन्द करता है । इसीलिए धर्म और कानून दोनों के अनुभवी अगुओंके द्वारा इन धार्मिक युद्धोंका फैसला करा लेना हमारे लिए विशेष कल्याणकारी है । इसके सिवाय जिन्होंने सम्मेद शिखरसम्बन्धी मामलोंपर बारीकी से विचार किया है वे जानते हैं कि यह मुकद्दमा 'प्रिवी कौन्सिल' तक जायगा, तो भी इस कलहकी समाप्ति होनेवाली नहीं है । इसके सम्बन्धमें ऐसी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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