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________________ MASAIRATIALA जैनहितैषी सन्देह नहीं कि उसका यह उद्देश्य कि तीनों अपनं श्वेताम्बरी-स्थानकवासीभाइयोंसे द्वेष न सम्प्रदायोंमें पारस्पारिक सहानुभूति बढ़ाई जाय करके उनके साथ प्रेम और सहानुभूति रक्खे । और एकताका प्रचार किया जाय, बहुत ही ४ स्वयंवर पद्धतिसे विवाह । अच्छा है। उसका यह उद्देश्य कट्टरसे कट्टर दिग . बाबू अवधविहारीलालजी, मास्टर जिला म्बरी श्वेताम्बरी या स्थानकवासीको भी बुरा , स्कूल बदायूँ, अपनी कन्याका विवाह-जिसकी नहीं लग सकता । सहानुभूति या एकताका अवस्था १४ वर्षकी है-आगामी वर्ष स्वयंवर मतलब यह नहीं है कि तीनों मिलाकर एक कर पद्धतिसे करना चाहते हैं । वे जातिके श्रीवादिये जायँ, यह कभी हो भी नहीं सकता । स्तव कायस्थ हैं । किसी भी शाखाके कायस्थमतलब यह है के तीनोंमें जो पारस्परिक युवक-जिनकी उम्र २०-२५ वर्षकी हो और द्वेष बढ़ रहा है, वह मिट जाय और जो काम जो कमसे कम मैट्रिक पास हों-इस. स्वयंवरमें एक साथ मिलकर किये जा सकते हैं वे किये उपस्थित हो सकते हैं । कन्या सुन्दरी, बुद्धिजायँ । शिक्षाप्रचार आदिके ऐसे एक नहीं मती, संस्कृतकी प्रथम परीक्षा पास, और गृहसैकड़ों कार्य हैं जो जुदे जुदे धर्मविश्वासोंको कार्यनिपुणा है । आगत युवकोंमेंसे वह जिसे रखकर भी एक साथ किये जा सकते हैं। एक १ पसन्द करेगी उसके गलेमें वरमाला डालेगी मण्डल ही ऐसी संस्था है जो इस उदार उद्देश्यका और फिर उसके साथ उसका विवाह हो जायगा। समाने रखकर काम कर सकती है। यदि वह पाणिप्रार्थियोंको कन्याके पितासे पत्रव्यवहार AR काम करे तो जनजातिके लिए एक सबसे बढ़ करना चाहिए । इत्यादि । इस समाचारको प्रकाकर गौरवकी चीज बन सकती है । ब्रह्मचारी- शित करके सहयोगी जातिप्रबोधक लिखता हैजीको उसे 'दिगम्बर संस्था' बनानेकी कोशिश " इस संवादसे हमको अपार हर्ष हुआ और न करना चाहिए । यदि अँगरेजी पढ़े हुए लोगों- हम उस दिनकी प्रतीक्षा करते हैं कि जब हमारी की दिगम्बर संस्थाकी उन्हें आवश्यकता ही जातिमें भी फिरसे इस प्राचीन रीतिका रिवाज हो तो वे 'श्वेताम्बर ग्रेज्युएट एसोसियेशन ' के हो । गार्हस्थ्य सुखसे जो आजकल प्रायः लोग समान एक जुदी 'दिगम्बर जैन ग्रेज्युएट एसोसि- वंचित हैं, उसका मूल कारण यह है कि पतियेशन' स्थापित कर सकते हैं और उससे अपनी पत्नीका स्वभाव नहीं मिलता।......जबतक इच्छानुसार केवल दिगम्बरजैन समाजकी ही दोनोंका स्वभाव नहीं मिलता, गृहस्थकी गाड़ी उन्नति करा सकते हैं । जिसतरह जुदे जुदे सम्प्र- ठीक नहीं चल सकती और दोनोंका स्वभाव दायों और जातियोंकी जुदी जुदी संस्थाओंकी उसी अवस्थामें मिल सकता है कि जब दोनों जरूरत है, उसी तरह ऐसी संस्थाओंकी भी एक दूसरेको जानते हों और उन्होंने अपनी जरूरत है जो कई सम्प्रदायों और जातियोंमें हार्दिक इच्छासे एक दूसरेसे विवाह किया हो । प्रम और सहानुभूति बढ़ानेका संदेशा सुनाती माता पिता द्वारा निश्चित किया हुआ सम्बन्ध हों । काम सब ओरसे होना चाहिए । जिस सुख और शान्तिके स्थानमें प्रायः अशान्तिका तरह दिगम्बर जैनसमाजकी और और बातों- कारण होता है । कारण कि सम्बन्ध करते समय में उन्नति करनेकी आवश्यकता है, उसी प्रकार उनकी दृष्टि एकदेशी होती है । सब बातोंकी उसे यह सिखलानेकी भी जरूरत है कि वह ओर उनका ध्यान नहीं जाता।" स्वयंवर हमारे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522828
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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