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जैनहितैषी
HUNT
पतितोद्धार ।
लोगोंका अनुमान है कि, यही देवशाही ASESENERAVINNEL खिंगिल है । इसने २५१ से २१५ वी. सी. तक ३६ वर्ष राज्य किया । उसके । बाद गोनन्दीय वंशका अन्तिम राजा अन्धAHANETRIANANERNETVasi युधिष्ठर सिंहासनारूढ़ हुआ और उसने [ले. श्रीयुत विश्वंभरदास गार्गीय । ] २१५ से १८० बी. सी. तक ३५ वर्ष राज्य किया । अपनी छोटी आँखोंके कारण
जिनधर्मका उपदेश है-"तुम द्वेष करना छोड़ दो । वह अंध कहा जाता था । अपने राज्यकालके अज्ञानताके जालको, बनसके तैसे तोड़ दो ॥ प्रथम कई वर्षों तक तो उसने धार्मिक जात्यादिके मदसे तिरस्कृत, मत किसोको भी करो । जीवन व्यतीत किया; पीछे इन्द्रियोंके वशी- संकीर्णताके स्थानमें औदार्यका आदर करो ॥" भूत हो उसने प्रजा और मंत्रिवर्ग दोनोंको अप्रसन्न कर दिया । अन्तमें हार मानकर हे शूद्र सेवक सदासे, सेवा हमारी कर रहे ।
वे चाहते न समानता, अज्ञानतामें मर रहे ॥
तो भी न हम समझें उन्हें, वे जानवर हैं या मनुज ।
__ हा हन्त ! गैर बनें हमारी भूमिके ही ये तनुज । सनको तिजांजली दे जंगलमें जाना पड़ा । कल्हण अपने ग्रंथका प्रथम तरंग यहीं हा ! श्वान सम आदर न अब, होता मनुजताके लिए। समाप्त करता है।
कैसे हुए हैं सभ्य हम, निजस्वार्थसाधनके लिए।
चाहे मरें अन्त्यज कुचलकर, किसीकी गाड़ी तले। भ्रमसंशोधन–पिछले अंकमें प्रमादवश कुछ
पर छू सकेंगे हम न उनको, तत्सदृशतनुमें पले ॥ अशुद्धियाँ रह गई हैं । पाठकोंको कृपा करके । उनका संशोधन इस प्रकार करना चाहिए । ३४८ पृष्ठके दूसरे कालिमकी चौथी लाइनमें १८९४ की यों कर घृणा हम हो गये, संसारमें सबसे गिरे। जगह ११८२ चाहिए। वास्तवमें १८९४ लौकिक पर शुद्र 'साहब' बन रहे, हो सदाको हमसे परे ॥ वर्ष है । इसके ६ लाईन और नीचे 'यद्यपि अब पा रहे अधिकार वे, हम हिन्दुओंके सिर चढ़े। राजतरंगिणीके अनुसार से लेकर 'संदिग्ध अवश्य है' हम घट रहे हैं संघबलमें, वे दिनोंदिन हैं बढ़े। तकके बदले यह वाक्य होना चाहिए-"राजतरंगिणीके अनुसार यह समय असंभव नहीं है। क्योंकि १३९४ बी. सी. से ११८२ बी. सी. तक
चेतो अभी तक ध्यान दो, इनको न ठुकराते रहो ।
राष्ट्रीयताके मार्गमें, कंटक न बिखराते रहो॥ अशोक तथा उसके उत्तराधिकारी ६ राजाओंका
. राज्य करना भी असंभव नहीं कहा जा सकता।" समझो इन्हें अपना, सहारा, प्रेमसे देते रहो।।
र भाचार और विचार इनके, विशद नित करते रहो। आगे ३४९ पृष्टपर दूसरे कालिमकी दूसरी लाइनमें ' १९ वींकी जगह १३ वी और छठी लाइनमें १८९४ की जगह ११८२ चाहिए। -लेखक ।
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