________________
जैनधर्म और जनवशन
४५९
नय वेदान्तके तटस्थ लक्षणके अनुरूप है। अनेक अंशमें तुलना हो सकती है। स्याद्वादका उससे वक्ष्यमाण वस्तु दूसरी किसी वस्तुकी मूलसूत्र जुदे जुदे दर्शन शास्त्रोंमें जुदे जुदे अपेक्षासे वर्णित होती है । द्रव्य निश्चय आकारमें स्वीकृत हुआ है। यहाँ तक कि नयसे ध्रुव है किन्तु व्यवहारनयसे उत्पत्ति शङ्कराचार्यने पारमार्थिक सत्यतासे व्यवहारिक
और विनाशशील है । अर्थात् द्रव्यके सत्यताको जिस कारण विशेष किया है, वह स्वरूप या स्वभावकी अपेक्षा देखा जाय इस स्याद्वादके मूलसूत्रके साथ अभिन्न है । तो वह नित्यस्थायी पदार्थ है, किन्तु शंकराचार्यने परिदृश्यमान या दिखलाई नियत परिदृश्यमान व्यवहारिक जगतकी देनेवाले जगतका अस्तित्व अस्वीकार नहीं अपेक्षा देखा जाय तो वह अनित्य और किया है, उन्होंने केवल इसकी पारमार्थिक परिवर्तनशील है। द्रव्यके सम्बन्धमें नित्यता सत्ता अस्वीकार की है । बौद्ध विज्ञानवाद
और परिवर्तन आंशिक या आपेक्षिक भावसे और शून्यवादके विरुद्ध उन्होंने जगतकी सत्य है-पर सर्वथा एकान्तिक सत्य नहीं व्यवहारिक सत्ता अतिशय दृढताके साथ है । वेदान्तने द्रव्यकी नित्यताके ऊपर ही प्रमाणित की है। समतल भूमिपर चलते दृष्टि रक्खी है और भीतरकी वस्तुका समय एकतल, द्वितल, त्रितल आदि उच्चताके सन्धान पाकर, बाहरके परिवर्तनमय जग- नाना प्रंकारके भेद हमें दिखलाई देते हैं; त्प्रपञ्चको तुच्छ कहकर उड़ा दिया है; किन्तु बहुत ऊँचे शिखरसे नीचे देखनेपर
और बौद्ध क्षणिकवादने बाहरके परिवर्तनकी सतखने महल और इकहरी कुटियामें किसी प्रचुरताके प्रभावसे रूप-रस-गन्ध-शब्द- प्रकारका भेद नहीं जान पड़ता । इसी तरह स्पर्शादिकी विचित्रतामें ही मुग्ध होकर, ब्रह्मबुद्धिसे देखनेपर जगत मायाका विकाश उसके भीतरी, बहिर्वैचिव्यके कारणीभूत, ऐन्द्रजालिक स्वप्नमात्र-अनित्य है; किन्तु नित्य-सूत्रको खो दिया है । पर स्याद्वादी साधारण बुद्धिसे देखनेपर जगतकी सत्ता स्वीजैनदर्शनने भीतर और बाहर, आधार और कार करनी ही पड़ती है । दो प्रकारका आधेय, धर्म और धर्मी, कारण और कार्य, सत्य दो प्रकार Points of View से उत्पन्न अद्वैत और विचित्र दोनोंको ही यथास्थान है। वेदान्तसारमें मायाको जो प्रसिद्ध संज्ञा स्वीकार कर लिया है।
दी गई है, उससे भी इस प्रकारकी भिन्न ___" इस तरह स्याद्वादने, विरुद्ध मतवादों. दृष्टिजात भिन्नसत्यता स्वीकृत होती है। की मीमांसा करके उसके अंतर्निहित आपेक्षित बौद्ध दृश्यवादमें शून्यका जो व्यतिरेकमुखी सत्यको स्वीकार करके उसे पूर्णता प्रदान की लक्षण दिया है, उसमें भी स्याद्वादकी छाया है। विलियम जेम्स नामके विद्वान् द्वारा प्रचारित पाई जाती है । “ सदसदुभुयानुभूय-चतुPragmatism मतवादके साथ स्याद्वादकी कोटिविनिर्मुक्तं शून्यत्वम् "- अर्थात् अ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org