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m mmuTIBILITARI राजनीतिके मैदानमें आओ!
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बड़ी भारी शक्तिकी अवश्यकता थी, इस बैलों या पक्षियोंको ही मारनेसे नहीं बचाते लिए उस समय जो कोई महावीर जिनके थे, या उनपर ज्यादा बोझ न लदने देकर झण्डे तले आया, वह जैन (श्रावक ) या व्यर्थ भार पड़ने न देकर ही चुप न रह नामसे पुकारा गया । इस महत्कार्यमें क्षत्रि. जाते थे; किन्तु उनका सबसे अधिक लक्ष्य योंको छोड़कर और शामिल ही कौन हो सकता मनुष्योंकी ओर था । उनका यही काम था था? और यदि कोई हुआ भी होगा, तो उस कि वे किसी व्यक्तिको किसी प्रकार दुःख न समय उद्देश्य एक होनेसे सबका रहन-सहन पहुँचने दें । वे प्रजाके स्वत्वोंकी रक्षा करते थे. एक ही ढंगका होता होगा, ऐसा जान पड़ता उनके ऊपर किये जानेवाले अत्याचारोंको है । उस समय जाति-पाँतिका खयाल करना रोकते थे और राजाके लिए ऐसी नीति उद्देश्यसिद्धिमें सब प्रकार हानिकर होता, तैयार करते थे जिससे किसी प्रकारकी बाधा इससे सारे जैनधर्मावलम्बी एक ही होंगे। राष्ट्रको न हो । इस प्रकारके धर्मग्रन्थोंकी इन विचारों को प्रकट करके हम ऋषभदेवजी रचना करते थे जिनके अनुसार चलनेसे उनद्वारा स्थापित वर्णाश्रमका विरोध नहीं करते की सारी जरूरतें मिट जाती थीं। यह बात हैं; परन्तु यह बतलाना चाहते हैं कि लप्त ऐसी नहीं है कि योही आसमानसे गिर पडी धीमें जान इसी तरह पडा करती है । हो; परन्तु राजनीतिके अच्छे अच्छे ग्रन्थ अब जिस प्रकार आज कुँवर दिग्विजय- भी उपलब्ध हैं* । हमारे घरके साहित्यसिंहजी यह पूछे जानेपर कि कौन हैं, जैन की टटोल ही कब की गई ? आज कल तो बतलाये जाते हैं और चाहिए था राजपत जैनधर्मावलम्बी पण्डितोंका विषय केवल बतलाना, ठीक इसी प्रकार उस समय जैन- न्याय ही रह गया है, इस लिए और ग्रन्थ धर्मावलम्बी किसी भी वर्णके होनेपर भी जैन आँखके सामने होते हुए भी नजर नहीं आते। या श्रावक बतलाये जाते थे। अस्त । आहिंसा अस्तु । जब महावीर भगवान् द्वारा चेताये प्रचारका काम ख़ब जोरशोरसे चला । पर यह हुए समाजने बहुत समय तक स्वार्थत्याग कार्य यों ही नहीं चल गया था । बडे बडे करके अनेक राजाओंको जैन बना दिया और आचार्योंने बडे परिश्रमसे लोगोंको राजनीति उनके द्वारा यह कार्य अच्छी तरह चलने सिखाई और ऐसे ऐसे शिष्य तैयार किये लगा, तब समाजके लोग यह लोकहितका जिन्होंने सैकडों राजाओंको इस धर्ममें शामिल कार्य छोड़कर व्यापारमें लग गये और तबकिया और इस प्रकार उनके द्वारा हिंसाको हीसे हम बनिये कहलाने लगे । हमारी रगरोका । हिंसाका जो लक्षण शास्त्रमें दिया है रगमें राजनीति भरी थी और क्षत्रियत्वका उससे मालूम होता है कि वे केवल बकरों, * जैसे श्रीसोमदेवसूरिकृत नीतिवाक्यामृत ।
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