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राजनीतिके मैदानमें आओ!
SALADHE
(ले०-श्रीयुत ब्र. भगवानदीनजी ।) । जिनकी प्रतिमायें हमारे मन्दिरोंमें विरा- बनकर पल्टनमें दाखिल होने जाइए; परन्तु जमान हैं वे सब ऐसे पुरुष थे जिन्होंने यह जानकर कि आप बनियें हैं तुरन्त अपनी घोर तपस्या द्वारा निर्वाणपद प्राप्त निकाल बाहर कर दिये जायेंगे ! यह बात किया था । वे सब क्षत्रियकुलमें उत्पन्न हमारी समझमें नहीं आती कि सारे ही हुए थे और उनमेंसे अधिकांशने बड़े बड़े क्षत्रिय हमारा-जैनधर्मका-साथ छोडकर राज्योंका संचालन किया था । भगवान् चले गये हों और बीचमें मिले हुए बनियें ऋषभदेवजीने प्रजाके हितके लिए ही बनियें हम सब रह गये हों । क्योंकि अगणित काम बतलाये थे जो अब तक इस प्रकारका कोई प्रमाण या उदाहरण जारी हैं । यदि यह कहा जाय कि उन्होंने नहीं मिलता । इस सम्बन्धमें हमको एक प्रजाको सभ्यता सिखलाई थी, तो कुछ बात याद आती है-। जब कुँवर दिग्विजयअत्युक्ति न होगी । हमारे अन्तिम तीर्थकर सिंहजी आश्रमके भ्रमणमें हमारे साथ थे महावीर जब हमसे बिदा हुए, तब भी तब अनेक स्थानोंमें वहाँके जैनी भाई अन्य हमारी अवस्था खासी थी और हमारे रीति- लोगोंको उनका परिचय देते हुए कहते रिवाज बहुत सीधीसादे क्षत्रियोंके जैसे ही थे-" पहले आप क्षत्रिय थे; परन्तु अब जैन थे । हमारे सारे पुराणपुरुष भी क्षत्रिय हो गये हैं । " अभिप्राय यह कि साधारण वंशके थे, ऐसा उल्लेख मिलता है। कुछ लोगोंकी अब यह धारणा ही नहीं रही है कि उपपुराणोंमें क्षत्रिय और वैश्य दोनोंका जैनोंमें वैश्योंके अतिरिक्त और कोई-क्षत्रिय कथन पाया जाता है-अर्थात् उनमें वैश्य आदि-भी गिने जा सकते हैं । जैन कहनेसे भी जैनधर्मके धारक बतलाये गये हैं, परन्तु अब केवल वैश्योंका बोध होता है। इस समय तो जितने जैनधर्मावलम्बी हैं वे इस विषयमें जब हम विचार करते हैं प्रायः सब ही वैश्य हैं। अक्सर लोग पूछ तब यह निश्चित होता है कि पार्श्वनाथबैठते हैं कि “.बनियाँ (वैश्य), क्या स्वामीके पश्चात् जब जैनधर्म बिल्कुल लुप्त यह कोई बुरी बात है ? " पर हम पूँछते हो गया, तब महावीरस्वामीका जन्म हुआ। हैं कि “ तो क्या यह कोई अच्छी बात इस समय हिंसाका प्रचार बहुत बढ़ चुका है ? " आप कितने ही अच्छे पहलवान् था । इसके रोकनेके महत्कार्यके लिए एक
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