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प्रतिदान । Rainfummmmmuintim
तो हमारा सभी कुछ स्वाहा हो गया था। कर वह बोला-"प्यारी क्लारा, मुझे क्षमा कर!" भण्डारघरमें चोर घुस गया था।"
और हतभाग्य दिवाकर ! वह मन-ही-मन __इस समय दिवाकर एकटक क्लाराकी ओर कहने लगा-“ओ पिशाची, शैतानी ! इसी लिए देख रहा था । मूरकी बात सुनकर क्लाराने बड़े तेरा इतना प्यार था । पृथ्वी बड़ी कठिन है। भावसे आह खींची।
इसका मुँह कैसा सरस और सरल है, पर इसके हेउडने कहा-" मि० मूर, इस आदमीके प्राण नारकी भावोंसे पूर्ण हैं। यह अँगरेज महिला हाथमें यह अंगूठी किसकी है ?
है-यही इसकी सभ्यता है !" मूरने कहा-"हाय राम ! यह तो मेरी हीरेकी
सभी विस्मित थे। सिर्फ नाजिरखाँ नामका बहुमूल्य अंगूठी है । यह तो मेरे वक्समें बन्द
नौकर-जिसने शामसे दिवाकरकी खातिर की
थी-कभी कभी दिवाकरकी ओर दर्द भरी थी। मालूम होता है इसने हमारी अन्यान्य
दृष्टिसे देख लेता था। चीजें भी चुराई हैं ।” ___ इसके बाद हेउडने दिवाकरकी जेबकी तलाशी
__जेलखानेके रोशन-दानसे चाँदनीकी एक ली । उसमेंसे क्लाराका दिया हुआ चाबीका ही
"" क्षीण और मलिन रेखा दिवाकरकी दीन शय्यागुच्छा निकला।
पर पड़ रही थी। जेलखानेके बाहर थोड़ी दूर वृद्धने सिरपर हाथ मारकर कहा-Great
" गाँवमें एक कुत्ता भोंक रहा था । उसका शब्द Heavens! This isa bunch of duplic
झिल्लीकी झंकारके साथ मिलकर हतभाग्य बन्दीके ate keys. __सभी आदमी बडे आश्चर्यसे दिवाकरकी ओर स्मृतिपटपर बचपनकी अपने ग्रामकी शान्त. देखने लगे । एक नौकरने कहा- हजर यह स्निग्ध और मधुर छबि खींच रहा था । एक बाबू बंगलेके बगलमें कोई महीना भरसे चिन्ताव आया होगा!"
दूसरा भाव, भाव-प्रवण दिवाकरके हृदयको - उस समय वृद्धने एक भारी रहस्यको मानो आलोड़ित कर रहा था, उसके सौ सौ टकडे कर
" रहा था। उसके अनजानमें दोचार आँसुओंकी खोला । उसने समझा कि बीच बीचमें कौन
बँदें उसके नेत्रों में आगई थी। युवक सोच रहा उसका धन चुराता था । यह काला आदमी ही भद्रवेशमें पड़ोसमें रहकर उसका सर्वनाश किया ।
था-कैसा अपमान है, कैसा मनस्ताप है और
या कैसा अपयश मिला है । अच्छे घरानेमें पैदा करता था। भगवानकी अपार करुणाके बिना होकर मिथ्या प्रलोभनमें पड़कर मिथ्या अपराक्या आज यह चोर पकड़ा जा सकता था ? धमें सच्चा दण्ड भोग रहा हूँ। चाहता तो बच . काराने कहा-“जोसेफ, मैं गोलमाल पसन्द भी सकता था। जजसे सब बात सच सच कह नहीं करती । किन्तु अब मैं समझती हूँ तुम्हारा देता । घर चचाके पास संवाद भेज देता तो व्यवहार किस कदर नीच है! यह दुष्ट तो शायद यह दुर्गति नहीं होती । पर किस तरह तुम्हारा धन चुराता था और तुम मुझको-अपनी इस जघन्य बातको प्रकट करता-किस तरह प्यारी स्त्रीको-प्रेमके-"
जेलसे निकलकर आत्मपरिचय देकर अपना वृद्धने उसको आगे कोई बात कहने न दी। काला मुँह दिखाता-चुप रहनेके सिवा-सच तो चम्पेकी कलीकी समान उन अंगुलियोंको चूम- यह है मेरे लिए और कोई उपाय ही नहीं था।
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