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________________ __पुस्तक-परिचय । बढ़िया आर्टपेपर हैं । चित्रोंकी संख्या ५० से ऊपर यहा आधुनिक अँगरेजीशिक्षासे वास्तविक शिक्षित है। छपाई दर्शनीय हुई है । लेख और कविताओंकी तैयार होते हैं और न प्राचीन संस्कृतशिक्षासे । संख्या २७ है। पाटलिपुत्र और विहारसे सम्बन्ध अँगरेजी स्कूल और कालेज गुलाम, खुशामदखोर, रखनेवाले ऐतिहासिक लेख कई हैं और वे बड़ी अपने भाइयों पर जुल्म करनेवाले, आरामतलब, खोजसे लिखे गये हैं। अधिकांश चित्र प्राचीन दुर्बल स्वार्थी पुरुष तैयार करते हैं और संस्कृतकी इमारतों और मूर्तियों आदिके हैं। लेखोंके संग्रह संस्थायें वर्तमान देशकालसे अनभिज्ञ घोंघा पण्डित करनेमें इस बातका ध्यान रखा गया है कि ने तैयार करती हैं। संस्कृत शिक्षाके सम्बन्धमें विचार विशेषतः बिहार और बिहारियोंसे सम्बन्ध रखने- करते हुए कहा गया है- “ हमारे देशका करोड़ों ले हों। कई लेख बहुत ही महत्त्वके हैं और बड़े रुपया संस्कृत पाठशालाओंमें खर्च किया जाता है, बड़े प्रतिष्ठित पुरुषोंके लिखे हुए हैं। कवितायें कई पर वहाँसे शिक्षा पाये हुए हमारे देशबन्धु शिक्षाके हैं:परन्तु एकाधको छोड़कर प्रायः निरी तुकबन्दियाँ हैं। किसी अंगकी पूर्ति नहीं करते । पिछले हजार डेढ़ हिन्दी पत्रों के अभीतक जितने विशेषाङ्क निकले हजार वर्षका इतिहास हमको इस बातकी सूचना है, हमारी समझमें यह उन सबसे अधिक सुन्दर और देता है कि जिस प्रकारकी पुरानी शिक्षाप्रणाली बहुमूल्य है । मूल्य लिखा नहीं, परन्तु रुपये बारह पाठशालाओंमें प्रचलित है उसके द्वारा हमारा आनेसे कम न होगा । हिन्दीके प्रेमियोंको इसकी जातीय जीवन स्वाभाविक ढंगसे विकसित नहीं हो एक एक प्रति अपने संग्रहमें अवश्य रखना चाहिए। सकता । पाठशालाओंके संस्कृत पढ़े हुए विद्यार्थी ९ शिक्षाका आदर्श और लेखनकला। आत्मिकबलसे हीन, संकुचित विचारोंमें पड़े हुए लेखक और प्रकाशक, स्वामी सत्यदेव परिवा- अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। बड़े बड़े दिग्गज जक । पृष्ठ संख्या १०९। मूल्य पाँच आने। मिलनेका विद्वान् धाराप्रवाह संस्कृत बोलनेवाले, यह नहीं पता, सत्यग्रन्थमाला आफिस जानसेनगंज इलाहा- जानते कि उनके जीवनका उद्देश्य क्या है ? बाद । यह बड़ी खुशीकी बात है कि हिन्दी सहि- शासन किसको कहते हैं ? भारत निर्धन क्यों हो त्यम नये जोशकी बिजली कनेवाले सत्यदे- रहा है ? जापानने उन्नति कैसे की ? अमेरिकाकी जीने लगभग दो वर्षके बाद अब फिरसे पुस्तकें तिजारतका भारतपर प्रभाव क्यों पड़ता है ? इंग्लिलिखना शुरू कर दिया है। यह आपकी व्याख्यान- स्तानकी शासनपद्धति क्या है ? भारतीय समाजमें मालाकी पहली संख्या है । इसमें आपके दो फूट होनेका कारण क्या है ? ऐसे ऐसे आवश्यक व्याख्यान हैं । हमने दोनोंहीको आद्यन्त पढ़ा। प्रश्नोंके विषयमें वे कुछ नहीं जानते । अलबत्ता 'लेखनकलामें ' लेखोंका महत्त्व, लेखकोंके भेद, न्यायके अवच्छेदकावच्छिन्न और व्याकरणकी फउनके उद्देश्य, कर्तव्य आदिपर विचार किया गया किकाओंमें सिर पटकना खूब जानते हैं । जो है, और वर्तमान लेखकोंकी बड़ी कड़ी समालो- दशा यूरोपके विद्वानोंकी १४-१५ वीं शताब्दिचना की गई है-खूब खरी खरी सुनाई गई हैं। योंमें थी, वही दशा आज हमारे संस्कृत विद्वानोंशिक्षासम्बन्धी व्याख्यानमें बतलाया है कि जो की है। यूरोपके ईसाई पादरी उन दिनों ' सुईकी शिक्षा शारीरिक, आर्थिक, मानसिक और आर्थिक नोक पर कितने फरिश्ते बैठ सकते हैं ? ' ऐसे स्वतंत्रता देती है, वही सच्ची शिक्षा है । हमारे जटिल प्रश्नोंपर महीनों शास्त्रार्थ किया करते थे; देशमें इस प्रकारकी शिक्षाका प्रायः अभाव है । न परन्तु अपनी उस मूर्खतासे यूरोपके लोग अब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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