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________________ RADIOmmom Balपुस्तक-परिचय। GanthurmTTAMITREETTETTERE ३६५ पाठकोंसे प्रेरणा करेंगे कि वे इस अनुवादको मँगा- शायद लागतसे भी कम रक्खा गया है । लगभग कर पढ़ें और प्रकाशकोंके उत्साहको बढ़ावें । साढ़े चार सौ पृष्ठोंकी कपड़ेकी सुन्दर सुवर्णाक्षर साधारणतः पस्तकका मूल्य अधिक मालम होता है: युक्त जिल्द बँधी हुई पुस्तकका मूल्य आठ परन्तु इसके लिए जो खर्च किया गया है उसको आने बहुत ही कम है जो लोग संस्कृत और देखते हुए वह अधिक नहीं है। गुजराती जानते हैं उन्हें इस ग्रन्थकी एक एक ४ कतर्व्यकौमुदी। प्रति अवश्य मँगा लेना चाहिए । रचयिता शतावधानी मुनि रत्नचन्द्रजी। विवे ५चम्पा। चक और प्रकाशक, चुनीलाल वर्धमान शाह, सारं लेखक, श्रीयुत कृष्णलाल वर्मा । प्रकाशक, गपुर, अहमदाबाद । स्थानकवासी सम्प्रदायमें मुनि , श्रीयुत अमीचन्द्र जैन, गोहाना ( रोहतक )। पृष्ठरत्नचन्द्रजी संस्कृतके अच्छे विद्वान हैं । स्मरण संख्या ९२ । मूल्य सात आने । दिल्लीके लाला शक्ति उनकी बहुत ही प्रबल है । वे संस्कृत कविता " मनोहरलाल अपनी स्त्री गोमतीके साथ सुखसे रहते । भी करते हैं । यह ग्रन्थ उन्हींकी रचना है । थे। सन्तानके लिए दोनोंने बहुत प्रयत्न किये परन्तु २३२ शार्दूलविक्रीडित छन्दोंमें यह पूर्ण किया गया है। इसमें कर्तव्य, शिक्षा, ब्रह्मचये, आरोग्य, फल कुछ नहीं हुआ। बहुत समयके बाद उनके क चम्पा नामकी लडकी हुई । गोमतीकी मृत्युक आज्ञापालन, व्यसनस्वरूप, गृहिणीकर्तव्य, विध समय मनोहरलालने प्रतिज्ञा की थी कि मैं दूसरी वाकर्तव्य, कन्याविक्रय, बाल्यविवाहनिषेध आदि अनेक विषयोंके सम्बधमें समयोपयोगी शिक्षा शादी न करूँगा; परन्तु एक ही वर्षके बाद प्रतिदी गई है । रचना सुन्दर है.। एक उदाहरणः ज्ञाको भूलकर उसने सुनहरीके साथ शादी कर ली। सुनहरी चम्पाको तरह तरहके कष्ट देने लगी । यावन्नार्थसमर्जने बलमभूद्दारादिनिर्वाहके, यावन्नेष्टतरा स. मनोहरलाल अपनी स्त्रीका गुलाम हो गया, वह भी माप्तिमगमत्प्रारब्धविद्याकला। चम्पाको मारने पीटने लगा। एक बार चम्पाकी यावबुद्धिविकाशदेहरचने प्राप्ते पेटीमें सोनेकी चूड़ी रखकर सुनहरीने उसे चोरी दृढत्वं न वा,तावन्नो सुखदं प्रवे लगाई । पुलिसने तहकीकात की, तो यह . . शनमिहाकाले गृहस्थाश्रमे ॥ सुबूत हुआ कि सुनहरीने ही चम्पाको कष्ट देनेके मुनि महोदयने प्रत्येक श्लोकका गुजराती भा- लिए यह चालाकी की थी। इससे सुनहरी और वार्थ लिखा दिया है और उस पर श्रीयत शाहने भी चिढ़ गई । उसने धन्नाकी मा द्वारा विष मँगाविस्तारपूर्वक विवेचन किया है। विवेचनमें अनेक कर उसके लड्डू बनाये और उन्हें चम्पाके लिए देशी विदेशी ग्रन्थोंसे उदाहरणादि देकर मूल वि- रखकर कहीं बाहर चली गई । होनहारकी बात षयकी बड़ी अच्छी पद्धतिसे परिषुष्टि की गई है । कि मनोहरलाल भूखे हुए और उन्होंने एक लड्डू इससे ग्रन्थकी उपयोगिता बहुत ही बढ़ गई है। खा लिया ! बेचारे तड़फने लगे। डाक्टरने जहर बड़ोदा राज्यमें यह इनाम और लायबेरियोंमें रख- खाया हुआ बतलाया। तलाशी हुई । चम्पाकी नेके लिए स्वीकृत हो चुका है और थोड़े ही सम- पेटीमें दो लड्डू और भी निकले । वह पकड़ी यमें इसकी दो आवृत्तियाँ हो चुकी हैं। यह भी ग्रन्थकी गई और उसे फाँसीकी आज्ञा हुई। पीछे गोपाल उत्तमताका एक निदर्शन है । छपाई, कागज, नामके एक लड़कने जो चम्पाको चाहता था, जिल्द आदि सब ही बातें अच्छी है और मूल्य तो धन्नाकी माके द्वारा पता लगाकर असली अपरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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