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________________ काश्मीरका इतिहास । काश्मीरका इतिहास छः कालोंमें विभक्त किया जा सकता है -(१) हिन्दू-काल, ( २ ) मुसलमान-काल, ( ३ ) मुगल-काल, (४) पठान-काल, ( १ ) सिक्ख काल, और ( ६ ) आधुनिक डोगरा काल | कहा जाता है कि, आजकलकी काश्मीर बैली किसी जमानेमें एक बड़ी झील थी, जो समय पाकर श्रीनगर से ३४ मील उत्तर पश्चिम बारामूला नामक कस्बेके पास आ निकली और झेलम नदीका आविर्भाव हुआ। कुछ दिनोंके बाद झीलसे पानीके निकलते रहने से इधर उधर जमीन निकल आई जो बढ़ती बढ़ती आधुनिक काश्मीरमें परिणत हो गई । यह किम्बदन्ती ही नहीं है बल्कि इसके चारों ओरके पहाड़ोंके देखने और वैज्ञानिकों के अनुसंधानों से मालूम होता है कि कश्मीर किसी जमानेमें झील था। बर्फसे ढके हुए पहाड़ों पर गौर करनेसे और गर्मी में इनसे पैदा हुए अथाह पानी इकट्ठा होने के स्थानकी सम्भवता पर दृष्टि डालनेसे यह कहना पड़ता है कि काश्मीर वास्तव में एक समय झील था जिसके चारों किनारोंपर छोटी वस्तियाँ थीं । पुरानी इमारतोंके खण्डरात अभीतक अधिकतर पहाड़ोंकी तराइयोंमें ही पाये जाते हैं, जो एक समय झील के किनारे थे । अवन्तिपुरके मन्दिर और मार्तण्डके पाण्डवस्थान और अन्य इमारतें पर्वतकी तराइयोंमें ही हैं । पहाड़ोंकी चोटियोंपर कई तह नीचे अभीतक मछलियोंके अंश पाये जाते हैं । Jain Education International ३४७ डल आज काश्मीरमें जिस जलराशिको झील कहते हैं, वह पहले बहुत बड़ी थी । प्राचीन समयकी बात जाने दीजिए; डोगरा - वशंके प्रथम राजा महाराजा गुलाबसिंहके समय में ही 'डल गेट' बना था, जिससे उसका अधिकांश पानी इस फाटक से निकलकर झेलममें जा गिरा और डलके इर्द गिर्द फलोंके वर्तमान बागीचोंकी सृष्टि हुई। नीलमतसमय इस विहार - नौका में कारण उसका पुराण में लिखा है कि प्राचीन झील में पार्वती देवी अपनी घूमा करती थीं और उन्हीं के ' सतीसर पड गया था । उसमें जलोद्भव नामक एक हिंसक दानव भी रहता था, जिसने किनारेकी वस्तियाँ विध्वंस कर दी " नाम थीं । एक बार पर्यटन करते करते ब्रह्मा के पौत्र कश्यप वहाँ आये और मनुष्योंका दानवको मारने के लिए एक हजार वर्ष तक आर्तनाद सुन बड़े दुखी हुए । उन्होंने उस तपस्या की; फिर भी वह दानव उनके हाथ न लगा और पानीके अन्दर जा छिपा । अन्तमें विष्णुने अपने त्रिशूलसे बारामूला के पासका पहाड़ी किनारा काट डाला और झील का पानी बह चला । तिसपर भी जलोद्भव अपनी शरारत से बाज न आया और आधुनिक हरि पर्वतक जड़के पास जमीनके अन्दर छिपा | देवी पार्वती उसकी बदमाशी ताड़ गई और उसके सिरपर एक पहाड़ ला पटका, जिससे वह वहीं चकनाचूर हो गया । इसी पहाड़को आजकल हरिपर्वत कहते हैं । प्रसिद्ध पुरातत्त्वज्ञ डाक्टर स्टीनका मत है For Personal & Private Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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