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________________ mmmmmm जैनहितैषी ३४८ है कि हरि पर्वतका वास्तविक नाम सारिका दत्तके अनुसार १२६ ० बी. सी. है । कोई पर्वत है। उनका कहना है कि काश्मीरी कोई इसका समय ३१२१ बी. सी. भी भाषामें संस्कृतका 'स' 'ह' हो जाता है। बताते हैं। उसके बाद ५३ राजे हुए, जिन्होंने इस प्रकार ' सारिका ' से 'हारिका' और १८९४ बी. सी. तक राज्य किया और हारिकासे 'हरि' होगया है । संभवतः झीलके जिनमें तीसरा राजा द्वितीय गोनन्द और ४७ बीचमें इस पहाडके रहनेसे वहाँ सारिका- वाँ अशोक था । द्वितीय गोनन्दके बादके यें बैठती हों और उसका नाम सारिका पर्वत ३५ राजाओंका नाम राजतरंगिणीमें नहीं पड़ गया हो । कश्यपके नामसे यह स्थान है। कल्हण कहता है कि वे खोगये हैं। कश्यपमर ( कश्यपका घर ) कहलाने लगा एक पुस्तकमें अशोकके काश्मीर-विजय करनेजो पीछे बिगड़कर कश्यमर और फिर का- का समय १३९४ बी. सी. दिया हुआ है। श्मीर हो गया । जो हो काश्मीरका पहले यद्यापि राजतरंगिणीके अनुसार यह समय झील होना साधारण विश्वास है और यह असंभव नहीं है, तो भी इसपर पूर्ण विश्वास भी मालूम होता है कि बहुत प्राचीन सम- नही होता. क्योंकि इससे यह सिद्ध होता यमें यहाँकी आबादी ठण्डके कारण अधि- है कि. उपर्यक्त ५४ राजाआमे आन्तिम सात कतर पशुओंकी ही थी। राजाओंने ५०० वर्षतक राज्य किया, जो ___ काश्मीरियोंका कथन है कि पराने सम- असंभव न होने पर भी, संदिग्ध अवश्य है। यमें काश्मीरमें असंख्य राजे थे, जिन्हें कोट- राजतरंगिणीमें अशोक बौद्ध धर्मका राजा कहते थे । इनके अधिकारमें थोडेबहत प्रचारक बतलाया गया है, पर जिस गाँव होते थे और वे आपसमें लडा कटा करते बौद्ध-धर्म-प्रचारक अशोकका हम जिक्र थे । अन्तमें इनमें जो रामे हारने लगे, करते हैं, उसका राज्यकाल साधारणतया उन्होंने मिल कर जम्मसे एक वीर राजपतको २७३ या २७२ से २३२ या २३१ बी. सहायतार्थ बुलाया। संभवतः इसका नाम 'दया- सी. तक समझा जाता है। अशोकके बाद करण' था। इसके वंशमें ५५ राजे हुए, उसका लड़का ' जलोक' राजा हुआ । वह जिन्होंने ६३३ वर्षोंतक काश्मीरमें राज्य शैव था और इसलिए उसके समयमें बौद्ध किया । अन्तिम राजा सोमदत्त महाभारतकी धर्मका ह्रास होने लगा। राजतरंगिणीके सिलड़ाईमें मारा गया । उसके बाद प्रथम वाय और किसी जगह अशोकपुत्र जलोकका गोनन्द राजगद्दीका अधिकारी हुआ । उसके नाम नहीं पाया जाता । उसके बाद द्वितीय राज्यभार ग्रहण करनेका समय कल्हणके दामोदर और तदुपरान्त हुविष्क जुष्क और अनुसार २४४८ बी. सी. और रमेशचन्द्र कनिष्क और सबसे पीछे प्रथम अभिमन्यु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522827
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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