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________________ तु बम्बई शहर और जैन-जनता। न श्वेताम्बर जैन कान्फरेंसने एक कमेटी इस बम्बईमें जैनस्त्रियोंकी संख्या ५८६५ है, लिए बनाई थी कि वह बम्बई शहरके जैनोंकी शेष १५३९५ पुरुष हैं, अर्थात् पुरुषोंकी अमृत्युसंख्यापर विचार करे । हर्षका विषय है कि पेक्षा स्त्रियाँ लगभग तिहाई या प्रतिशत ३३ है; कमेटीने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी और परन्तु उनकी मृत्यु गत चौदह वर्षों में प्रतिशत वह इतनी महत्त्वकी है कि प्रत्येक जैनको- ३६ ते ४० तक हुई है । अर्थात् जैनियोंकी कमसे कम बम्बई निवासियोंको तो अवश्य ही तमाम मृत्युसंख्या यदि १०० हुई है। तो उनमें पढ़ना चाहिए । यदि सारे भारतके जैनोंकी स्त्रियोंकी ४० और पुरुषोंकी ६० हुई है। अर्थात् जनसंख्यापर विचार करनेके लिए भी एक ऐसी ही जैन पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियाँ और भी अधिक कमेटी बनाई जाय, तो उससे बहुत लाभ हो; मरती हैं । और बच्चोंकी मृत्यु तो उनसे भी हम जान सकें कि हमारी संख्या दरअसल अधिक है। घट क्यों रही है। जिन सब रोगोंसे बम्बईके जैनोंकी मृत्यु __ बम्बई शहरमें रहनेवाले जैनोंकी संख्या सन् होती है उनमें चार मुख्य हैं--१ प्लेग, फेंफ१९०१ की मनुष्यगणनाके अनुसार १४२४८ ड़ेके रोग, ३ श्वासरोग और ४ जुदा जुदा तरथी, जो १९११ में बढ़कर २०४६० हो गई। हके ज्वर तथा कमजोरी आदि । गत चौदह वर्षों में अर्थात् यहाँ १० वर्ष ६२१२ की वृद्धि हुई। प्रतिशत ६० से लेकर.७५ तक आदमी इन्हीं पर इस बढ़तीका कारण यह है कि बाहरके चार रोगोंसे मरे हैं। लोग व्यापारादिके लिए आकर यहाँ बस गये कमेटीके सज्जन-जिनमें दो डाक्टर हैं-जैनोंकी हैं-कुछ यहाँकी पैदायशके कारण वृद्धि नहीं अधिक मृत्यु संख्याके नीचे लिखे कारण बतहुई । इसका पता तब लगता है जब हम यहाँकी लाते हैं। मृत्युसंख्या पर विचार करते हैं । बंबईमें पार- १ लगभग १२५७० जैन शहरके सघन सियोंकी जनसंख्या ५०९३१ है । गत चार और गन्दे मुहल्लोंमें रहते हैं और उनमेंसे अवर्षोंमें इस जातिके लोगोंकी प्रत्येक हजारके धिकांश लोग इकहरी, छोटी, यथेष्ट हवा और पीछे २२-२३ मोतें हुई हैं, परतु इन्हीं चार प्रकाशसे रहित; सस्ते किरायेकी कोठरियोंमें वर्षो में जैनोंकी मृत्युसंख्या प्रति हजार ६० से रहते हैं। जिस जगहमें रसोई बनती है, उसी लेकर ७० तक हुई है ! अर्थात् हमारी मृत्यु पार- जगहमें रातको सो जाते हैं। अतः स्वच्छ सियोंकी अपेक्षा लगभग तीन गुणी होती है ! सारे वायु और प्रकाशके बिना रोगोंके शिकार बन बम्बई शहरकी मृत्युका परिमाण प्रति हजार ४० जाते हैं। और सारे भारतका ३४ है ! ग्रेटबिटन आदि २ स्त्रियोंका अधिकांश भाग प्रसूतिके समदेशोमें तो यह परिमाण १५ से अधिक यकी बीमारियोंसे मृत्युके मुखमें पड़ता है। कुछ कभी नहीं होता! तो उसी समय मर जाती हैं और कुछ तरह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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