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________________ अनमेल विवाह | आने और विधवा होनेसे पवित्र होते रहते हैं । ये उच्चजातिके लोग कन्या -विक्रयको तो बेशक कुछ ऐबकी बात मानते हैं और उसके दूर करके लिए कुछ झूठमूठ कोशिश भी दिखाते हैं, यहाँतक कि कभी कभी पंचायत में ऐसे प्रस्ताव भी पास कर देते हैं कि कन्या - विक्रय करनेवाले जातिच्युत कर दिये जायेंगे, परन्तु वे अमलमें नहीं लाये जाते हैं | क्योंकि पंचायत के सर्दाको यह बहुत आसान बहाना हाथ लगा हुआ है कि बेटी बेचनेवाले बहुत ही गुप्तरीतिसे रुपया गिना लेते हैं । अतएव यह सिद्ध नहीं हो पाता है कि अमुक व्यक्तिने बेटीके बदले थैली ली है या नहीं । यदि अधिक सन्देह होनेपर पंचायत में उससे पूछा जाय तो वह अपनी निर्दोषता के विषय में कसम खानेके अतिरिक्त मंदिरमें जाकर और भगवान्की मूर्तिको हाथ लगाकर यह कहने को तैयार होता है कि मैं तो बेटी गाँव के कुएका पानी भी नहीं पीता । हमारे उच्च जाति भाई वास्तवमें कन्या - विक्रयको चाहे भला समझते हों चाहे बुरा; पर इसमें तो कुछ सन्देह नहीं है कि वे साठ साठ और सत्तर सत्तर वर्षके बूढ़ेका विवाह आठ आठ-दस दस वर्षकी कन्याके साथ होनेको जरा भी बुरा नहीं समझते हैं। बेटीका बेचना Jain Education International २७९ बहुत गुप्त रीतिसे होता है, उसका कुछ सबूत नहीं मिलता - यह सब सही है; पर उसका जो मूल कारण है वह दुनिया भर के सामने सूर्यके समान चमकता है । बगुलेके परोंके समान बिल्कुल सफेद बालोंवाला अमुक बूढा जिसके न मुँहमें दाँत हैं और न पेटमें आँत; और जिसको यमलोक लेजानेवाले यमदूत घड़ियाँ गिन रहे हैं - अपनी पोती और परपोती के समान नन्हीं बच्ची से विवाह करानेके लिए सिरपर मौर बाँधे और मुँह पर सहरा लटकाये दूलह बना है, परन्तु हमने तो आजतक नहीं सुना किसी जगहकी बिरादरीने ऐसे पुरुषकी बरात में जानेसे और मूछों पर ताव देकर लड्डू खाने से कभी इन्कार किया हो । ऐसे विवाहों में कोई कुछ भी रोक टोक नहीं करता है, बल्कि दोनों तरफके विरादरी वाले बड़ी खुशी और चाव साथ शुभलग्न और शुभमुहूर्त में शुभजोड़ीको मिला देते हैं - खूब बधाई गाई जाती है और 'अहिंसा परमोधर्मः' का आकाश तक ऊँचा झंडा उड़ाकर और अपनेको दयाधर्मका पालनेवाला मानकर मदसे अंगमें फूले नहीं समाते हैं । यही नहीं बरन वे संसारके सभी मनुष्यों को अपनेसे नीचा मानकर आनंदसे आयु व्यतीत करते हैं । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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