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________________ २७६ जैनहितैषी अपने गले कटवाते थे और दूसरोंके देना शुरू कर दिया । उस समयके जिन जिन काटते थे। - महापुरुषोंका चरित पुराणों वा चरितग्रन्थोंमें । हिन्दुस्थानको इस बातका बड़ा भारी गौरव मिलता है, उनमें उनकी बहादुरी और बड़े बड़े प्राप्त है कि बहुत प्राचीन कालसे इस देशमें स्वयं- कृत्य केवल इसी एक बातसे भरे हुए हैं, कि वरकी रीति प्रचलित हो गई थी, और स्त्रीकी उन्होंने अमुक जगह जाकर इतनी कन्याओंके यहाँ तक कदर की जाती थी कि स्वयंवरके दिन डोले लिए, वा उनके अमुक सत्कृत्य या बहादुरी दूर दूर प्रदेशोंसे बड़े बड़े योग्य पुरुष इस पर उनको इतनी कन्यायें भेट दी गई ! बातकी उम्मेदवारीमें आते थे कि स्वयंवर रच- कन्याओंको धन-सम्पत्ति समझकर नजर नेवाली युवती हमारे ही गलेमें जयमाल डाले वा पुरस्कारमें देनेकी प्रथा भी अधिक स्थायी । और हमें ही पति स्वीकार करनेका अनुग्रह नहीं हुई । क्योंकि बलवान् पुरुष पहले हीसे इस दर्शावे; परंतु पुराणोंके देखनेसे मालूम होता बातका दावा करने लगे, कि अमुक कन्या जवान है, कि स्वार्थवश होकर लोगोंने स्वयंवरकी भी होनेपर हमको दी जाय । एक एक कन्यापर. मिट्टी खराब कर दी । स्वयंवरमें आये हुए बहुसं- कई बलवानोंका दावा होनेके कारण बेटीवालोंकी ख्यक विफल मनोरथ उम्मेदवारोंने लड़ाई आपत्ति कुछ कम न हुई । अतएव इस आपत्तिसे झगड़ा करना और बलपूर्वक कन्याको लेजानेके बचनेके लिए दूसरा सुगम मार्ग यह निकाला लिए युद्ध करना प्रारंभ कर दिया । इस तरह गया कि कन्या पैदा होते ही जानसे मार डाली स्वयंवरका शुभमंडप भी श्मसानभूमि बन जाय । तबसे कन्याओंके माँ बाप अपनी संतागया। ऐसे समयमें माँ-बापके लिए कन्यायें नके खूनसे आप ही अपने हाथ रंगने लगे, और घोर आपत्तिका कारण बन गई । यदि माँ-बाप इस तरह एक बड़ी भारी आपत्तिसे उनकी रक्षा स्वयंवर नहीं रचते और आप ही अपनी सम्मतिसे होने लगी । हम अंगरेज सरकारको धन्यवाद किसी योग्य वरके साथ कन्याका विवाह निश्चित दिये बिना नहीं रह सकते कि जिसने इस करते थे, तो अन्य बलवान् लोग फौजें लेकर चढ़ बड़े भारी पापसे हिंदुस्थानको बचाया; परंतु आते थे; यदि स्वयंवर रचते थे तो अंतमें झगडा उस पुरानी रीतिका प्रभाव अब तक हमारे होता था, किसी तरह निस्तार नहीं था। ऐसे हृदयपर जमा हुआ है । यद्यपि हम राज्यके कारणोंसे बेटीवाले बड़ी आपत्तिमें फँस जाते थे। भयसे कायासे उक्त पाप नहीं कर सकते हैं, पर इसी कारण किसकि घर कन्या पैदा होना उसके मन और वचनसे हम उससे मुक्त नहीं हुए हैं। दुर्भाग्यका लक्षण समझा जाता था। उसी कन्या पैदा होनेके दिनसे ही हम उसका मरना दानसे उसके घर रोना पीटना शुरू हो जाता मनाते हैं और वचनसे ' मरजा, जलजा' आदि था । अन्तमें कन्याके माता पिताओंन खूब शब्द कहते हैं, यहाँ तक कि यदि हम उसके सोच विचार कर और सब तरहसे लाचार हो साथ लाड़-प्यार भी करते हैं तो कहते हैं-ला कर अपनी कन्याओंको भी अन्य धन-सम्पत्तिके तेरा गला काट हूँ, आ तेरा पेट फोड़ दूँ-या समान एक प्रकारका माल असबाब समडकर- कुएमें ढकेल दूँ ' इत्यादि। जिस प्रकार आजकल अफ़सरोंका डालामें फल प्राचीन कालमें कन्या-विवाहके समय बड़े फूल आदि दिये जाते हैं-अपनी कन्याओंको बड़े वीरोंकी सेना लेकर वरके चढ़ आने और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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