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________________ AARILALILARAmmOMITIRADITIC अनमेल विवाह। २७५ दिखानेवाला होता है, परन्तु उसका फल आते ही पुरुषोंने भेड़ बकरियोंकी तरह स्त्रियोंका बहुत ही भयंकर और नाना तरहकी आपत्तियोंमें जखीरा जमा करना शुरू कर दिया और इस फँसानेवाला होता है । पुरुषने किसी समय सोचा काममें ऐसी बढ़ा चढ़ी होने लगी कि चाहे कितनी कि कमाई तो हम करते हैं और एडीसे चोटी तकलीफ और दुर्दशा क्यों न हो, पर मेरा तक पसीना बहाकर सब कछ बटोरकर घर में स्त्रियोंका जखीरा दसरेसे अधिक ही निकले। लाते हैं और स्त्री घर बैठे बैठे खाती है,इस कारण अस्तु यदि एकके पास दस स्त्रियाँ हुई तो वह सर्वथा हमारे आश्रित है और हमारी दासी दूसरा पन्द्रह संग्रह करनेकी कोशिश करने है; हमारा पूर्ण अधिकार है कि हम जो चाहें लगा । यह कोशिश बढ़ते बढ़ते सैकड़ों उससे काम लें । ऐसे विचारोंके कारण पुरुषोंने और हजारोंकी गिन्ती तक पहुँची । फल इसका स्त्रीको अर्धाङ्गिनी मानना छोड़ दिया और यह हुआ कि स्त्रियोंके संग्रह करनेके सिवा तभीसे उसके हाथसे गृहप्रबंधका काम भी पुरुषोंको और कोई कार्य ही न रहा। यहाँ तक निकल गया-वह केवल दासीके रूपमें रह कि राजाओंने प्रजाकी रक्षा, शिक्षा आदिका गई । इसका फल यह हुआ कि पुरुषोंके काममें खयाल छोड़कर अपनी सारी शक्तिको रनवासकी बाधा आने लगी और उसे घर-गृहस्थाके कामों- स्त्रियोंकी संख्या बढ़ानेमें ही लगा दी। जिन की भी चिन्ता रहने लगी । इससे स्त्री- पुराण और चरितग्रन्थोंको हम पढ़ते हैं, उनमें पुरुषमें जो प्रेम-बंधन या मित्रताका नाता अधिकतर यही कथन मिलता है, कि अमुक था वह टूट गया और पुरुषके लिए उसकी राजाने दूसरे राजापर इस हेतु चढ़ाई की थी, कि हृदयकी आकुलताको मिटानेवाला और उससे वह अपनी लड़कीको अमुक राजाके साथ व्याह सच्ची सहानुभूति रखनेवाला कोई आसरा न रहा। न करके मेरे साथ कर देवे । बस, केवल इसीके इसी तरह उसके घर-गृहस्थी सम्बन्धी और कई लिए खूब घमासान लड़ाई हुई, सहस्रों वीरोंके काम भी तितर बितर हो गये और पुरुष भारी धड़से सिर जुदा हुए और खूनकी नदियाँ बहीं । आपत्ति या उलझनमें पड़ गया; परन्तु उसके पुराण और चरितग्रन्थोंमें अपने देश या जातिस्वार्थ और स्त्रियोंकी निर्बलताने उसकी आँखोंको की रक्षाके लिए वीरोंके वीरत्व या आत्मोत्सर्गके न खुलने दिया-वह अपनी गलती न पहचान उदाहरण नामको भी नहीं मिलते हैं। उनके सका, वरन उसने यह विचारा कि गृहस्थीके पढ़नेसे तो यही विदित होता है, कि जिस समय चलानेके लिए जब एक स्त्रीरूपी दासीसे काम वे ग्रन्थ लिखे गये हैं, उस समय प्रतिदिन चारों नहीं चलता तो अनेक स्त्रियोंका संग्रह करना ओर स्त्रियोंके लिए ही भारी भारी युद्ध हुआ चाहिए और उनसे भिन्न भिन्न काम लेकर गृह- करते थे । बहादुर लोग अपने अपने राजाओंको स्थीको सुचारु रूपसे चलाना चाहिए। यह विचार नवीन नवीन स्त्रियाँ ताप्त करानेके लिए ही ** भारतमें बहुविवाहकी जो प्रथा चली है, उसका कारण विद्वान् लोग कुछ और ही बतलाते हैं । वे कहते हैं कि यह प्रथा आवश्यकताके कारण चली थी । जिस समय आर्य लोग यहां आकर और अनार्योंके प्रतिद्वन्दी हो कर बसे थे उस समय उन्हें अपना जनबल बढानेकी जरूरत थी और इसके लिए बहुविवाह बहुत ही उपयोगी है । एक ही पुरुष अनेक स्त्रियोंसे अनेक सन्तान उत्पन्न कर सकता है । वर्तमान महा. युद्ध यूरोपमें पुरुषोंको संख्या कमकर रहा है, इसलिए यूरोपके विद्वान् भी कहने लगे हैं कि अव हमें वहुविवाहकी रीति चलानी पड़ेगी। -सम्पादक। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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