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________________ २७४ __जैनहितैषी उसको मनुष्यों में गिनना मानवजातिको बट्टा उमर बितावें । इसके सिवा मनुष्यमें वचनशक्ति लगाना है । इस समय भारतवर्षकी जो दुर्दशा भी है, जिसके कारण उसे यह अभिलाषा होती दिखाई देती है, उसका अधिकांश दोष यदि है कि वह एक ऐसा सच्चा मित्र बनावे जिसको अनमेल विवाहके सिर पर थोपा जाय तो अनु- वह अपने हृदयके विचार, अपनी गुप्त बातें चित नहीं है। यह एक चिन्ताकी बात है कि अपने दुख-दर्दको बेखटके सुना सके; जिसके हमारे सुधारकोंका इस ओर जितना ध्यान जाना सामने वह अपने हृदयको खोलकर रख सके चाहिए उतना नहीं जाता है। और जिससे सच्ची सहानुभूति प्राप्त कर सके इसमें कोई सन्देह नहीं है, कि प्रकृतिने पुरु- ऐसा सच्चा मित्र पुरुषके लिए उसकी स्त्री और षकी अपेक्षा स्त्रीजातिको कद, ताकत और स्त्राके लिए उसका पुरुष ही हो सकता है. साहसमें हीन बनाया है । घोडासे घोडी क्योंकि इनकी प्रत्येक बातमें दोनोंका ही कमजोर होती है. बैलसे गाय कमजोर होती सुख-दुख गर्भित रहता है, परन्तु यह सब है, शुकसे शुकी निर्बल होती है, इसी तरह तब ही हो सकता है, जब स्त्री-पुरुषका जोड़ा मानवजातिमें भी पुरुषकी अपेक्षा स्त्री कमजोर समान और उपयुक्त हो। हुआ करती है । इसके अतिरिक्त स्त्री गर्भ- इसके सिवा विवाहके और भी कई उद्देश्य धारण करती है अर्थात् ९ महीने तक बच्चेको हैं; परन्तु इस विषयपर जितना अधिक विपेटमें धारण करती है, जिसके कारण वह दौड़- चार किया जाता है, उससे यही सिद्ध होता है धूप और अधिक परिश्रमका काम नहीं कर कि विवाहका कोई भी प्रयोजन अनमेल विवासकती है । बच्चा पैदा होने पर उसके स्तनोंमें हसे सिद्ध नहीं हो सकता है; प्रत्युत अनमेल दूध पैदा होजाता है और वह दो तीन वर्ष विवाह अनन्त आपत्तियोंका जन्मदाता और तक बच्चेका लालन-पालन करनेसे छुट्टी नहीं मनुष्यको मनुष्यत्वसे गिरा देनेवाला है । विवापाती है । इस कारण वह एक जगह रहनेके हके उद्देश्यों पर विचार करनेसे यह बात स्पष्ट लिए बाध्य है । अतएव अत्यंत प्राचीन समयसे रूपसे विदित होती है कि गृहस्थीकी महत्ता समाजने यह व्यवस्था की है कि स्त्री घरमें रह और गृहस्थका सुख एक पुरुष और एक स्त्रीके कर घरू कामोंका प्रबंध करे और पुरुष बाहर जोड़ेसे ही है । इसके विरुद्ध यदि एक पुरुष जाकर अपनी आजीविका चलावे; परन्तु और कई स्त्रियोंका विचित्र जोड़ा बनाया जाय ऐसा तब हो सकता है जब स्त्री-पुरुषका जोड़ा या एक स्त्री और कई पुरुषोंका एक अद्भुत समान और उपयुक्त हो। अनमेल अवस्थामें बंधान बाँधा जाय तो इससे विवाहका उद्देश्य ऐसी आशा करना केवल स्वप्न मात्र है। पूरा न होकर उससे अनेक तरहके दुख ही उत्पन्न ___ मनुष्यकी सभ्यता और धर्मके आचार्योंने होनेकी संभावना है। विवाहकी सृष्टि इस हेतुसे की है कि मनुष्य जब हम इस बातका विचार करते हैं कि पशुसमाजकी बहुत गिरी हुई और अत्यन्त हिंदुस्थानमें अनमेल विवाहकी प्रथा क्यों चल अशान्तिकारक अवस्थासे उन्नत होकर एक पड़ी, तब हमें मालूम होता है कि हमारा स्वार्थ पुरुष या एक स्त्रीसे अपनी कामवासनाको परि- ही इसका मूल कारण है । स्वार्थका मित रखकर शील और संतोषके साथ अपनी बहिरंग बहुत मनोहर और नानाप्रकारके लालच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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