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हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः ।
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बारहवाँ भाग।
अंक ६.
जैनहितैषी।
जेष्ठ, २४४२. जून, १९१६.
AstamashasmanastasARASRFOR , सारे ही संघ सनेहके सूतसौं, संयुत हों, न रहे कोउ द्वेषी । ? है प्रेमसौं पालैं स्वधर्म सभी, रहैं सत्यके साँचे स्वरूप-गवेषी ॥
और विरोध न हो मतभेदतें, हो सबके सब बन्धु शुभैषी । , भारतके हितको समझें सब, चाहत है यह जैनाहतषी ॥ OUPSRUUPUURDUSURSAT3
अनमेल विवाह ।
[ लेखक-श्रीयुत सूरजभानु वकील । ] यह बात सभी जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दशामें भी गृहस्थीकी गाडीको आगे चलानेगृहस्थरूपी गाड़कि दो पहिये हैं। जिस तरह की कोशिश की जाती है और उससे सुख गाड़ीके दोनों पहिये समान होनेपर ही गाड़ी शान्तिकी आशा बाँधी जाती है, परन्तु चल सकती है-असमान अर्थात् छोटे बड़े होनेसे इस अनमेल विवाहका फल वही होता है जो नहीं चल सकती; उसी तरह स्त्री-पुरुषका होना चाहिए। इससे गृहस्थीका सारा ढाँचा उचित मेल होनेपर ही गृहस्थी भलीभाँति चल बिगड़ जाता है और दंगा-फिसाद, लडाई-झगसकती है, अनमेल होनेपर नहीं, परन्तु खेद ड़ा, रोना-झीखना, कलह, चिन्ता, दुराचरण, है कि भारतवर्षमें अनमेल विवाह कुछ कम निर्लज्जता और अपकीर्ति उत्पन्न होकर वह घर नहीं होते हैं-कभी आठ वर्षके बालकको १५ नरकका नमूना बन जाता है। केवल इतना ही वर्षकी कन्या ब्याह दी जाती है और कभी नहीं, इस अनमेल विवाहसे जो संतान पैदा ६० वर्षके बूढेके साथ आठ वर्षकी बालिकाका होती है वह निर्बल, साहसहीन, कायर, भीस गठजोड़ा कर दिया जाता है, और ऐसी और अपनी इच्छाओंकी ऐसी दास होती है कि
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