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________________ CHUNARISHMMMMMAMALAALI JAN AEहितैषी ३०० हैं । उन्होंने उस समयकी परिस्थितिको देखकर लगभग सौ घर हैं । ४० घरके करीब और जैनियोंके सिरसे शूद्रत्वका कलंक दूर उपाध्योंके हैं और बाकीके अन्य क्षत्रिय जैनोंके । करनेके लिए कई ब्राह्मणधर्मकी बातोंको यहाँके जैन लागे अपनेको क्षत्रिय कहते हैं। अपनेमें शामिल किया; और उनमें कुछ परि- जान पड़ता है मूडबिद्री आदिके जैन और वर्तन कर उन्हें जैनधर्मका रूप दे दिया। शेट्टीसे यह अलग ही जाति है। उनका इनका आदिपुराणका जरा गहरी दृष्टि से स्वाध्याय करने- परस्परमें शादी-ब्याह भी नहीं होता है । से जाना जाता है कि जैसा ब्राह्मण लोगोंने गाँवमें तीन जैनमन्दिर हैं। एक भट्टारकजीका अपने राजोंके लिए जैनविद्वानोंका आशीर्वाद मठ भी है। इस गद्दीपर बैठनेवाले सभी भट्टारक वगैरह देना बंद करवा दिया था, ठीक वैसा ही चारुकीर्तिके नामसे प्रसिद्ध होते हैं। पहले उपदेश आदिपुराणमें जैनराजोंके लिए दिया भट्टारकजीका स्वर्गवास होजानेसे अभी नये भट्टागया है। ब्राह्मण लोग मिथ्यात्वी, धर्म-द्रोही हैं, रका पट्टाभिषेक माघ शुक्क १३ को हुआ है । उनसे जैनराजोंको कभी आर्शीवाद न लेना ये भट्टारक काञ्चीके रहनेवाले हैं। पढ़े-लिखे चाहिए । शास्त्रीजीने कहा-यही कारण है कि साधारण बतलाये जाते हैं । इस प्रान्तमें यह आदिपुराणके पहलेका इस विषयका कोई पद्धति अच्छी है कि जो नये भट्टारक नियत ग्रन्थ नहीं मिलता। यदि ये बातें जैनधर्ममें किये जाते हैं वे प्रायः ऐसे होते हैं जो पहले पहलेसे होतीं तो अवश्य कोई इस विषयका संसार सम्बन्धी सब बातोंका अनुभव कर चुके हों। पुराना ग्रन्थ मिलना चाहिए था। उत्तरप्रान्तकी तरह ढोंगी बालब्रह्मचारियोंको शास्त्रीजीके कहनेसे यह भी जान पड़ा कि सहसा अविचारके साथ गद्दीपर नहीं बैठा दिया मैसर महाराज वैसे हम लोगोंका आशीर्वाद बड़ी जाता है । और इस कारण यहाँके भट्टारक खशीसे लेते हैं पर राज-दरबारमें जैनविद्वान उन्हें प्रायः चारित्रके बिगड़े नहीं होते। समयको देखते आशीर्वाद नहीं देसकते। इसका कारण बत- हुए कहा जा सकता है कि भट्टारकोंकी अब कोई लाया जाता है कि पुराने समयसे ही ऐसी रीति जरूरत नहीं दीखती, पर कहीं यदि बैठाना ही चली आती है। हो तो इसी रीतिका अनुकरण करना चाहिए । _ शास्त्रीजीने ब्राह्मणधर्मके सम्बन्धमें कहा कि उत्तरप्रान्तके पञ्चायतियोंको इस बातपर अधिक उससमय इस प्रान्तमें शैवधर्मका इतना प्रचण्ड ध्यान देना चाहिए। प्रभाव बढ़ गया था कि उससमयके शैवराजाने यहाँ जो गाँवमें भट्टारकजीके मठके सामने तलवारके जोरसे हजारों जैनोंको शैव बना लिया एक विशाल जैनमन्दिर है, वह वीरानसा पड़ा था । और जिन्होंने शैवधर्म ग्रहण करनेसे इंकार हुआ है । उसकी कुछ भी व्यवस्था नहीं है । किया वे तत्काल कत्ल कर दिये गये थे। जिस मन्दिरमें प्रतिमा हैं, पर साल-सँभाल कुछ नहीं शवराजाने यह अधर्म किया था वह पहले जैनी है । शायद ही कभी कोई उसमें झाडू लगाता था और किसी खास घटनाके कारण शैव हो गया होगा । जहाँ सौ घर जैनियोंके हैं वहाँ एक जैनथा। श्रवणबेलगोला छोटासा गाँव है। हजार मन्दिरकी ऐसी दशा हो यह बड़े दुःखकी बात आठ-सौ घरोंकी बस्ती है । पर जैनधर्मके लिए है । पञ्चोंको इसका कोई . प्रबन्ध करना यह बड़े ही महत्वका स्थान है । यहाँ जैनियोंके चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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