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________________ 200MAHALA0213MBAI मेरा दक्षिण-प्रवास । २९३ और उसी धर्मको हम भी पालते हैं पर उनमें उनकी सारी जिन्दगीको नष्ट कर देना है। उनका और हममें जमीन आसमानका अंतर है । वह समय विद्याभ्यास करनेका है, इस लिए उसका उन्होंने स्वार्थकी तीखी छुरीसे अपनेको बचाया उधर ही उपयोग करना उचित और आवश्यक है। था और हम स्वयं उसे अपने गलेपर रखकर जो बालक छुटपनसे पढ़ने लिखनेमें लगा दिये अपने साथ दूसरोंके हजारों गले उससे काट रहे जाते हैं, उन्हें यदि अन्य विषयोंकी साधारण हैं। स्वार्थ तुझे धिक्कार है ! क्या कनाड़ाके शिक्षाके बाद इन्हीं कामोंकी उत्तम शिक्षा दी जाय जैनी भाई इस घृणित कामके रोकनेका कोई तो वे इन कामोंको बड़ी अच्छी तरह कर सकते प्रयत्न कर उन निरपराध पशुओंके अनन्त हैं और उसे उन्नतिपर पहुँचा सकते हैं। आशीर्वादका श्रेय लेंगे ? ___ इस ओर शिक्षाप्रचार न होनेका एक और दक्षिणप्रान्तकी जैसी धार्मिक स्थिति अच्छी कारण है । यहाँ अपने पिताकी जायदादका वानहीं है, उसी तरह वहाँकी सामाजिक स्थिति भी रिस या उत्तराधिकारी लड़का नहीं होता किन्तु अन्य प्रान्तोंकी अपेक्षा खराब है। मुझे कई भानजा होता है। इस कारण जो दो चार उदालोगोंसे मिलनेका मौका मिला, पर मुझे किसीके हरण हमारे देखनेमें आये उनसे जाना जाता है मुँहसे सामाजिक चर्चा सुनाई न पड़ी । जान पड़ा कि पिताका मोह या प्रेम अपने लड़के पर कि शिक्षाका प्रचार इस प्रान्तमें बहुत थोड़ा है कितने ही अंशोंमें कम हो जाता है । इससे उसके और वह भी अन्य लोगोंकी देखादेखी अब कुछ लिखाने पढ़ानेकी ओर वे अधिक ध्यान नहीं कुछ होने लगा है। कनाड़ा प्रान्तके लोगोंमें शिक्षा- देते हैं । लड़का होशियार होनेतक अपने पिताप्रचार न होनेका एक बड़ा बाधक कारण यह है हीके पास रहता है और इस समय तक उसे कि यहाँकी बस्ती उत्तरप्रांतके लोगोंकी तरह शिक्षा नहीं मिलती है। जब वह मामाके घर समुदायरूप नहीं है। कोस-कोस, दो-दो कोसके जाता है तो उसे घरके काम धन्धोंमें फँस जाना फासले पर एक एक घर बसा हुआ है । जहाँ पड़ता है । इस तरह दोनों ही जगह उसके लिए उनका घर है उसीके आसपास उनकी खेती है। शिक्षाका द्वार बन्दसा हो जाता है । यह बात इधर प्रायः सभी जैनी भाई खेतीका धंदा करते मैंने आँखों देखी है कि एक दो विद्यार्थी जो हैं-रात दिन उन्हें खेतीके कामोंमें ही फंसे रहना दक्षिणकनाड़ाके उत्तरप्रांतमें पढ़नेके लिए चले पड़ता है। अतएव अपने बाल-बच्चोंके लिखाने आये हैं और उनके पिता, भाई, बन्धु आदि सब पढ़ानेकी ओर बहुत कम लोगोंका ध्यान जाता मौजूद हैं । उन्हें पाँच पाँच छह छह वर्ष इधर है । और न कोई जातीय सम्मेलन ही हुआ करते पढ़ते और रहते होगये परन्तु इतने सुदीर्घ समहैं, जिनमें कि अपनी सामाजिक स्थितिपर विचार यमें भी उन पत्थरके हृदयवाले उनके पिता और करनेका उन्हें मौका मिल सके । अतः इन लोगोंके भाई, बन्धुओंने अपने आँखोंके तारे प्यारे बच्चोंकी बाल--बच्चोंको जन्मसे ही इसी खेती आदिकी एक पत्र द्वारा भी खबर न ली-कुशलता न पूँछी! शिक्षा मिलती है और फिर उनकी सारी जिन्दगी इस उदाहरणसे पाठक जान सकते हैं कि कनाइसी काममें बीतती है । हमारा यह कहना नहीं ड़ाके जैनी भाई उक्त भानजेके उत्तराधिकारित्वहै कि खेती वगैरह करनी कोई बुरी बात है, परन्तु की प्रथाके कारण अपने लड़कों पर कितना बच्चोंको छुटपनहीसे इन कामोंमें लगा देना गाढ़ा प्रेम रखते हैं ! जब अपनी प्यारी संतान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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