________________
क्योंकि ये नदियाँ जूनागढ़ और द्वारिकाके मार्गसे कई सौ कोस दूर हैं । परन्तु आगे जब हमने इस विषय की छानबीन की और काठिया वाड़का नकशा मँगाकर देखा, तब यह भ्रम दूर हो गया । हमें निश्चय हो गया कि कविकी इस विषयमें अच्छी जानकारी थी । यद्यपि उसका वर्णितक्षेत्र कालिदास के जितना बड़ा नहीं है; तो भी उसने उसमें पर्यटन किया है और ऐसा जान पड़ता है कि उसने स्वयं आँखों देखे हुए स्थानों का वर्णन किया है । आश्चर्य नहीं कि कवि काठियावाड़का या उसके आसपास के ही किसी स्थानका रहनेवाला हो ।
नीचे हम कुछ स्थानोंके विषयमें खुलासा करना चाहते हैं जिनका वर्णन नेमिचरितमें आया है:
—
नोमचरित काव्य ।
१ रामगिरि ( श्लोक १ ) - मेघदूतका रामगिरि अमरकंटक पर्वत है । परन्तु नेमिचरि तके कर्त्ताने यह नाम गिरनारके लिए दिया है । ऊर्जयन्तिगिरि, रैवताद्रि आदि नाम तो गिरना - रके जगह जगह मिलते हैं, पर यह नाम इस काव्यके अतिरिक्त कहीं नहीं देखा गया । संभव है कि कविने मेघदूतके चतुर्थचरणके वशवर्ती होकर -- जिसमें कि ' रामगिरि नाम पड़ा हुआ है — गिरनारका नाम रामगिरि न होनेपर भी अगत्या मान लिया हो और हमारे देशमें 'राम' शब्द इतना पूज्य है कि उसे किसी भी पूज्यतीर्थ के लिए विशेषणरूपमें देना अनुचित भी नहीं कहा जा सकता ।
२ द्वारिका (श्लोक १६ ) – गिरनार से द्वारिका वायव्य कोण में है । इसलिए इस श्लोक में कहा है कि द्वारिका जाने के लिए आपको उत्तरकी ओर जाकर फिर पश्चिमको जाना पड़ेगा ।
३ वेत्रवती ( श्लोक ० २६ ) - यह द्वारि का प्राकार के पास है । ६४ वें श्लोककी गोमती
Jain Education International
२८७
और यह एक ही मालूम होती है । गोमती अब भी गोमती ही कहलाती है । वे या तो इसका दूसरा नाम होगा, या उसमें बेत अधिक होंगे, इसलिए कविने उसका इस अन्वर्थ नामसे उल्लेख किया होगा । मेघदूतके जिस चरणकी यह समस्यापूर्ति है उसमें यह शब्द पड़ा हुआ है, इसलिए कवि ऐसा करने के लिए विवश था । मेघदूतकी वेत्रवती मालवेकी बेतवा नदी है ।
6
४ स्वर्णरेखा (श्लोक ३२ और ४५ ) - यह नदी गिरनार पर्वतसे ही निकली है । छोटीसी पहाड़ी नदी है । इसकी रेतमें सोनेका बहुत सूक्ष्म अंश अब भी पाया जाता है । इसे लोग ' सुवरणा ' कहते हैं । आगे चलकर यह नदी शायद किसी दूसरे नामसे प्रसिद्ध है ।
1
५ क्रीड़ा पर्वत ( श्लो० २७ ) - ' तुलसीश्याम' नामक पर्वतको लोग श्रीकृष्णका कीड़ा पर्वत कहते हैं । इसपर रूठी रुक्मणिकी मूर्ति बनी हुई है ।
६ वामनराजाकी नगरी (श्लो० ३२ ) - इसको इस समय ' वणथली ' कहते हैं । जो कि 'वामनस्थली ' का अपभ्रंश है । यह जूनागढ़ स्टेटका एक कस्बा है और जूनागढ़ से लगभग ५ कोसकी दूरीपर है । यहाँ वह स्थान भी बना है जहाँ विष्णुने तीन पैरसे पृथ्वी मापी थी।
७ भद्रा (श्लो० ५० ) - यह नदी इस समय ' भादर' नामसे प्रसिद्ध है । यह जसदके पास पर्वत से निकली और नवीबन्दरसे आगे अरब समुद्र में मिली है । कविने इसके संगमस्थलका ही वर्णन किया है ।
८ पौर ( श्लो० ५१ ) – यह इस समय पोरबन्दर के नाम से प्रसिद्ध है । भद्रा ( भादर ) को पार करनेके बाद कविने इस नगर के मिलकी बात कही है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org