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________________ Ammmmmmmm २८८ + जैनहितैषी-- ८गन्धमादन और बेणुनपर्वत (श्लो० काव्यमें क्षेपकसहित सभी श्लोकोंके चरणोंकी ५३ और ६१)-हालार और बरडो प्रान्तके पूर्ति की गई है और इसीलिए इसमें १२५ बीचकी पर्वतश्रेणीको 'बरडो' कहते हैं। संभ- श्लोक हैं । इससे मालूम होता है कि कविके वतः इसी श्रेणीके किन्हीं दो पर्वतोंका नाम समयमें उक्त क्षेपक श्लोक प्रचलित थे। गन्धमादन और बेणुन होगा । कविने इन दोनों- यह काव्य काव्यमालामें बहुत समय पहले का वर्णन पोरबन्दरसे आगे चलकर किया छप चुका है। पं० उदयलालजी काशलीवालने इसका हिन्दी अनुवाद भी किया है जो गतवर्षमें ___ मेघदूतके मूल श्लोक ११५ हैं और १० छप चुका है। हो सका तो अगामी अंकमें इसके श्लोक क्षेपक बतलाये जाते जाते हैं । पर इस कुछ पद्योंकी बानगी भी दिखला दी जायगी । CHANAHANAGARILALLARAMINATIOMAHARA C HILLILLY विधवा बहू और सधवा सास । ARTHAYRETIRITEREmmmmITHERPRETRINITIATTIRITTE [ लेखक, कविवर पं० गिरिधर शर्मा।] (गीत) सास न जाने सोच सोच क्या दृश्य कैसा दिखलाया राम। फूली अंग न माय ॥ दृश्य० ॥ तरुण बहू विधवा हो बैठी। करती घुल घुल काम। स्वर्ग सिधारे प्राणनाथकेसज धज सास बनाती तिस पर . बाला बड़ी मलीन । देती उरमें डाम ॥ दृश्य०॥ पर, माँ, सुतके गये सजे यों, (२) है आश्चर्य नवीन ॥ दृश्यः॥ बालबधू मनमार बिचारीबैठी मूंड़ मुड़ाय। असती है, या सौतेली माँ, बाल बनाती लख लख दर्पण सास हृदय हुलसाय॥हश्य० ॥ विधवा पुत्रवधूके सन्मुख या दत्तककी माँय जो सजती हरषाय ॥ दृश्य० ॥ हियमें जले जले बाहर भीबहू आगके पास। (७) जबाकुसुम बालोंमें डाले राम करे क्या उसको गिरिधर चैन उड़ावे सास ॥ दृश्य० ॥ तू मत दे कुछ दोष । (४) भारत सामाजिक दोषोंपर सोच सोच निज दशा बहू तो तू निकाल निज रोष ॥ दुबली हो हो जाय। कहे मन दृश्य दिखाया राम । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522826
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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