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fierम्बर और saarम्बरसमाजका ग्रन्थप्रकाशन कार्य ।
१४ उपदेशसप्तति--सोमधर्मगणिकृत पत्र १०२ । इसकी रचना वि० संवत्, १५०३ में
१५ विचारपंचाशिका - पत्र १० और १६बन्धषट्त्रिंशिकासावचूरि - पत्र १० । वार्षिकृत |
१७ ज्ञानसारसूत्र - यशोविजयकृत मूल • और देवचन्द्रकृत टीका सहित । पत्र ११० । १८ प्रतिमाशतक - यशोविजयकृत मूल और भावप्रभसूरिकृत टीका सहित । प० ४५ । १९ सूक्तिरत्नावली – विजयसेन सूरिकृत
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पृष्ठ ४८ ।
२० महादण्डकस्तोत्र - समय सुन्दरकृत | पत्र १२ । ये छह ग्रन्थ विक्रमकी सत्रहवीं शताब्दि बने हुए हैं । २१ मेघदूतसमस्यालेख :- मेघविजय कृत । पृष्ठ २८ ।
२२
चम्पकमालाकथा - भावविजयगणिकृत | पत्र ३० । ये दो ग्रन्थ अठारहवीं शब्द के हैं ।
२३ धम्मिल्ल कथा । पत्रं ७ | २४ चतुर्विंशतिजिनस्तुतिसंग्रह - शीलरत्नसूरिकृत । प० १२ ।
२५ चेतोदूत । पृष्ठसंख्या ३० । २६ परमाणुखण्ड-पुद्गल - निगोदषत्रिशिका - रत्नसिंहरिकृत वृत्तिसहित | पत्र२२ । २७ रोहिणी - अशोकचन्द्र कथा - कनककुशल कृत । प० १६ ।
२८
पर्युषण पर्वाष्टाह्निकाव्याख्यान - बिजयलक्ष्मीसूरि । प० १२ । २९ अन्नाय उंछकुलक- आनन्दविजयकृत । प० १० । पिछले नौ ग्रन्थोंका समय आदि अज्ञात है ।
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दो चार को छोड़ कर प्रायः सभी ग्रन्थ बम्बईके निर्णयसागर प्रेस में, बढ़िया और बहुमूल्य मजबूत कागज पर, खुले पत्रों में सुपररायल बारह पेजी साइजमें छपे हुए हैं। प्राय: प्रत्येक ही ग्रन्थ के प्रारंभ में ग्रन्थकर्ताका परिचय या रचनाका समय आदि दिया गया है । सम्पादन और संशोधन योग्यतापूर्वक हुआ है । इस विषय में सबसे अधिक उल्लेख योग्य बात यह है कि प्रायः सब ही ग्रन्थ चार चार पाँच पाँच प्रतियों की सहायता से संशोधन किये गये हैं 1 किसी किसी ग्रन्थकी तो सात सात प्रतियाँ संग्रह करके सम्पादन किया गया है ! इसका कारण यह है कि श्वेतम्बरसम्प्रदायके प्राचीन पुस्तक भण्डार पुस्तक-प्रकाशक-संस्थाओंके लिए प्रायः मुक्तद्वार रहते हैं। पर हमारे यहाँकी दशा इससे ठीक उलटी है । हम लोगों को एक एक प्रतिका प्राप्त करना भी बहुत कठिन है । डिपाजिट रुपया रखने पर भी ग्रन्थ नहीं मिलते । हमारे आराके सिद्धान्तभवनकी तो — जिसकी कीर्ति - दिग्विदिग्व्यापी हो रही है—अभीतक सूची ही तैयार नहीं हुई है, फिर उससे ग्रन्थोंकी सहायता ली जाय तो कैसे !
इस ग्रन्थमालाकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका कोई भी ग्रन्थ विक्री करनेकी इच्छासे नहीं छपाया जाता । इनका सबसे अधिक भाग साधु और साध्वियों को दान किया जाता है | सभा लाइफ - मेम्बरोंको एक एक प्रति मुफ्त दी जाती है । दूसरे विद्वानों और योग्य पुरुषों को भी ये ग्रन्थ बिना मूल्य दिये जाते हैं । कुछ ऐसे जैनपुस्तकालय और जैन - मन्दिरोंके भण्डार भी हैं जहाँ प्रत्येक ग्रन्थकी एक एक प्रति दानस्वरूप भेज दी जाती है ।
सभा के पास इस कार्य के लिए कितना फण्ड है और उसके कितने लाइफमम्बर हैं यह हमें
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