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JUMBAITHLIBARAMAMATAMIL
जैनहितैषी
___ इस सम्बधमें एक बात और है । कुछ पंडित लेग—जो अगाध प्रेमके कारण अपतो पुराने द्वेषोंके कारण और कुछ इस समा- नेसे निम्र श्रेणीके . मनुष्योंका जैनधर्ममें जमें प्रचलित बुरी प्रथाओंके कारण लोगोंने पदापर्ण करना सहन नहीं कर सकतेइस धर्मको एक प्रकारके भयंकर विषमय अपनी संकीर्ण उपदेशदेनेवाली जिह्वाओंके धुरमें लिप्त कर दिया है, जिसके कारण न केवल लगाम न लगावेंगे? ऐतिहासिक दृष्टिसे जैनलोगोंको इससे घृणा और भय होता है किन्तु स्वयं धर्म बड़े महत्त्वका है, इसके पुराने मंदिरों इस धर्मका भी गला घुट रहा है । अतः और शास्त्रोंसे संसारको बहुत लाभ पहुँचा है, विचारशील जैनोंका यह भी कर्तव्य है कि यह सब कुछ ठीक है; किन्तु क्या वे यह प्रयत्न करें और इस धुएँको नाश कर डालें, नहीं देख सकते कि यदि इस धर्मके अनुकुप्रथाओंको दूर कर दें और वास्तविक मूल यायी ही न रहे तो यह सब महत्त्व क्या सिद्धान्तोंके ज्ञानका प्रचार करें। काम आवेगा ? क्या इतने पर भी औरों के
४ नाशमान धर्म-उपर्यक्त बातोंसे ही इस धममें आजानेको वे लोग द्वार न यह चतुर्थ कारण ठीक जान पड़ता है। " सरकारी रिपोर्टमें लिखा है कि " ऐसा जान ,
. सरकारी रिपोर्टोंमें घटी क्यों हुई इसका पड़ता है कि यह धर्म विलुप्त हो रहा है।"
",, तो उल्लेख है; किन्तु इसका कोई जिकर नहीं विचारवान् पुरुष पूछते हैं कि क्या इस धर्म
कि इस जातिकी जन-संख्या बढी क्यों नहीं। में कोई ऐसी बात है जो जैनोंको उन्नत जन
- जिन करणोंसे घटी हुई है वे चाहे थोड़े नहीं होने देती और उनकी संख्या नहीं समयसे हों ओर शायद थोड़े समय तक रहें बढ़ने देती ? किन्तु हा ! इसमें तनिक भी भी; किन्तु हम देखेंगे कि वे कारण कि सन्देह नहीं कि हमारा नाश हो रहा है।
" जिनसे हमारी उन्नति रुकी हुई है कहीं
अधिक बलवान् और भयंकर हैं। क्या धनाढ्य जैनोंकी आँखें खुलेंगी ? क्या
इन कारणों में हमारे सामाजिक रीतिउन्हें इस बातका ध्यान आवेगा कि जिन , मंदिरोंके बनावानेमें वे लाखों रुपये व्यय
रिवाजोंका बहुत बड़ा भाग है और इनमें
भी यहाँ एक विशेष रिवाज पर खास जोर कर देते हैं वे बहुत निकट भविष्यमें बिना
देना अत्यन्त आवश्यक है । क्योंकि वह पुजारियोंके व्यर्थ हो जायेंगे ! क्या कोई
२ समाजमें ऐसा जमा हुआ है कि कभी किसीउन्हें यह नहीं समझा सकता कि इस हास- को यह ध्यान भी नहीं आता कि इसमें के रोकनेका कार्य लाखों गुणा अधिक पुण्य- भी परिवर्तन करनेकी आवश्यकता है । मय है ? क्या इस बातको जानकर भी वे आइए, पहले जैनोंकी विवाह-सम्बंधी संख्याजैनधर्मको निजकी सम्पत्ति समझनेवाले धुरंधर ओं पर विचार करें।
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