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________________ KaMILAIMIMOIROID विविध प्रसङ्ग । iffffffffffffffffffifffim mm २३९ हैं । इस मतकी सत्यता मण्डल और प्रान्तिक- उठ हैं-उसपर विचार करनेका उनकी गतानुगसभाके कार्योंसे बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती है। तिक बुद्धिको अवकाश ही नहीं मिलता है। और इसी कारण हम इसके पास होनेको कुछ महत्त्व भी ४ जनहितैषीके आन्दोलनका नहीं देते हैं। यह तो पास होना ही चाहिए था। निषेध । यदि यह पास न होता तो आश्चर्य होता । इस दूसरा महत्त्वका प्रस्ताव इन शब्दोंमें पास प्रस्तावको पेश करनेवालों, अनुमोदन करनेवालों हुआ है-“जैनतत्त्वप्रकाशक और जैनहितै- और सम्मति देनेवालोंमेंसे किसीने भी इस बातकी धीमें जो विधवाविवाहके मण्डनका आन्दोलन जरूरत नहीं समझी कि जैनहितैषीके प्रथम शुरू हुआ है-यह कार्य जैनधर्मसे अत्यन्त अंकका वह लेख-जिसके कारण यह उछल विरुद्ध है । अतएव यह सभा इस दुष्कृत्यका कूद शुरू हुई है-एक बार अच्छी तरह बाँच निषेध करती है और पत्रसम्पादकों तथा विद्वा- तो लिया जाय । हमें बहुत अधिक सन्देह है नोंको प्रेरणा करती है कि वे इसके विरुद्ध लेख कि उक्त लेख बाँचा गया है अथवा उसका अभिप्रकाशित करें ।" इस प्रस्तावके अनुमोदनके प्राय समझनेकी चेष्टा की गई है । लिए न्यायाचार्य पं० माणिकचन्दजी, पं० ५ जैनहितैषीके लेखका सारांश। पीताम्बरदासजी और पं० कश्तूरचन्दजीके . लगभग १॥ घंटे तक व्याख्यान हुए और जिसके जैनहितैषीके उक्त लेखका सारांश यह है कि मनमें जो आया उसने वही कहा । पिछले उप- स्त्री और पुरुष दोनोंको जन्मभर ब्रह्मचर्यपूर्वक देशक महाशयने तो जोशमें आकर यहाँतक रहना चाहिए । यह श्रेष्ठ मार्ग है । जो ऐसा कह डाला कि जो लोग जैनहितैषी खरीदते हैं वे नहीं कर सकते उन्हें शादी कर लेना चाहिए अपने पैसेको पानीमें फेंकते हैं । सब भाइयोंको और पुरुषको अपनी एक मात्र स्त्रीमें और स्त्रीको इसी समय प्रतिज्ञा कर लेना चाहिए कि जैनहितै- एक मात्र अपने पुरुषमें सन्तुष्ट रहना चाहिए । षीको न कभी मँगायँगे और न कभी पढ़ेंगे। यदि बीचमें पुरुष मर जाय तो स्त्रीको और स्त्री कई सज्जनोंने कहा था कि इस प्रस्तावकी मर जाय तो पुरुषको जीवन भर ब्रह्मचर्यसे जरूरत नहीं है, अनेक लोग इसके विरुद्ध रहना चाहिए । यह मध्यम मार्ग है। जिन भी थे, परन्तु अन्तमें प्रस्ताव रखा गया लोगोंसे यह नहीं बन सकता है-जिन्हें ब्रह्मऔर जनरल सभामें पास भी हो गया। चर्यसे जीवन बिताना कठिन जान हमें इस प्रस्तावके पास हो जानेमें जरा भी पड़ता है उनके लिए तीसरा निकृष्ट मार्ग यह है आश्चर्य नहीं हुआ। जहाँ स्वतंत्र विचारकोंकी- कि स्त्रीके मरनेपर पुरुष दूसरी शादी करले और अपनी सदसद्विवेक बुद्धिपर विश्वास रखने पुरुषके मरनेपर स्त्री अपने लिए कोई आश्रय ढूँढ़ वालोंकी-संख्या थोड़ी होती है; दूसरोंके पीछे ले । उक्त सारे लेखका यही आशय था और चलनेवाले-हाँमें हाँ मिलानेवाले अथवा दूसरोंके जिनके जरा भी विचार शक्ति शेष है, जो धर्म प्रभावसे दब जानेवाले ही अधिक होते हैं, वहाँ और समाजशास्त्रके स्वरूपको जानते हैं, वे इसमें ऐसा होना ही चाहिए और फिर यह तो एक ऐसा कोई भी दोष या अन्याय नहीं देख सकते। विषय है कि जिसका नाम सुनते ही लोग भड़क लेख भरमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि प्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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