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________________ २३८ ABORATITAMIDIORAIL जैनहितैषी लगभग किस समयमें इसकी रचना हुई होगी। हिन्दू विश्वविद्यालयके पाठ्य-ग्रन्थोंमें जैनग्रन्थोंको इसमें भी बहुतसी बातें भविष्यत्कथनके रूपमें स्थान देनेके विषय प्रेरणा करने और जैनमिलिखी गई हैं और यह प्रकट करनेकी कोशिश को आगामी वर्षसे साप्ताहिक कर देनेके प्रस्ताव की गई है कि ग्रन्थकर्ता सचमुच ही भद्रबाहु भी उल्लेख योग्य हैं। श्रुतकेवली हैं ! आशा है कि अन्यान्य विद्वान् ३ सेठीजीका प्रस्ताव । भी इस ग्रन्थकी परीक्षा करेंगे और उसका फल सर्वसाधारणपर प्रकाशित करनेकी कृपा करेंगे। सेठीजीके विषयमें जैनसमाजमें जो आन्दो लन हुआ है जान पड़ता है उसका परिणाम २ प्रान्तिक-सभाका अधिवेशन। अच्छा हुआ है । उसने लोकमतको उनके दिगम्बर-जैन-प्रान्तिक सभा बम्बईका चौदहवाँ अनुकूल बना दिया है और वह इतना प्रभाव • अधिवेशन इस वर्ष नासिकके निकट गजपंथ तीर्थ डाल चुका है कि जो लोग पहले विरुद्ध थे वे पर ता० ८ और ९ अप्रैलको सकुशल हो गया। भी अनुकूल हो गये हैं । यही कारण है जो गजपन्थ तीर्थपर सभाका यह दूसरा अधिवेशन प्रान्तिक सभामें यह प्रस्ताव सर्वसम्मतिसे पास है-इसके ७-८ वर्ष पहले वहाँ एक अधिवेशन होगया कि उनके छुटकारेकी प्रार्थना करनेके लिए और भी हो चुका है। अबकी बार जनसंख्या वायसराय साहबके पास एक डेप्यूटेशन भेजा पहलेसे भी कम रही। लगभग ५००-६०० जाय। श्रीयुक्त सेठ हीराचन्द अमीचन्दजी शोलास्त्री पुरुष एकत्र हुए थे । पहले दिन तो मेम्ब- पुर और श्रीयुत जयकुमार देवीदास चवरे बी. रोंका कोरम ही पूरा न हो पाया था, इस कारण ए. बी. एल. ने डेप्यूटेशनमें जाना स्वीकार सभाका अधिवेशन न हो सका । ये ऐसी बातें हैं किया । श्रीयुत बाबू अजितप्रसादजी एम. ए. जिनसे लोगोंकी रुचिका पता लगता है। सभाओं एल. एल. बी. डेप्युटेशनमें जाना पहले ही और व्याख्यानोंसे अब लोगोंको उतना प्रेम नहीं स्वीकार कर चुके हैं। इस विषयमें सभाकी रहा है जितना कुछ समय पहले दिखलाई देता जितनी प्रशंसा की जाय उतनी थोड़ी है । जिस था। अब ये रोज रोज काम हो गये हैं और इस प्रस्तावके लिए उच्चशिक्षा प्राप्त लोगोंके भारतकारण इनकी 'अतिपरिचयादवज्ञा' होने लगी है। जैनमहामण्डलका साहस न पड़ा, उसीको जब तक इन कामोंमें कोई नई जान न डाल दी साधारण पढ़े लिखे लोगोंकी सभाने विना जाय और इनके मार्गों में कोई उत्साहवर्धन परि. विरोध पास कर डाला ! यद्यपि इस प्रस्तावके वर्तन न किया जाय तब तक यह शिथिलता अनुकूल बहुमत तो महामण्डलकी सब्जैक्ट बढ़ती ही जायगी । अधिवेशनकी सबसे कमेटीमें भी था; परन्तु वहाँ प्रस्ताव पास न हो बड़ी सफलता यह समझना चाहिए कि जुदी सका था । यहाँ हो गया, इसका सबसे बड़ा जुदी संस्थाओंको लगभग ढाई हजार रुपयोंकी कारण यह जान पड़ता है कि यहाँ न तो सभाप्राप्ति हो गई । सब मिलाकर १३ प्रस्ताव पास पति ही सरकारी नौकर थे और न दूसरे कार्यहुए जिनमें दो उल्लेख योग्य हैं । एक पं० कर्त्ता । भारतके एक प्रसिद्ध नेताका मत है अर्जुनलालजीके सम्बन्धका और दूसरा जैन- कि उच्चशिक्षाप्राप्त लोगोंके हृदय जितने कमजोर हितैषी और जैनतत्त्वप्रकाशकके सम्बन्धका। और भयभीत हैं, उतने साधारणजनताके नहीं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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