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जैनहितैषी
भक्तिमें, और उनके व्रतोंमें भी उन्हें महान् रीति रिवाज जैनोंको और हिन्दुओंको आपसपापका बंध होता है।
में मिला देते हैं । यह तो बहुत अच्छी ___ इतना जान चुकने पर यह आवश्यक बात है और इससे तो हमें इस बातका होगया है कि अब उन कारणोंपर विचार बहुत अच्छा उदाहरण मिलता है कि किया जाय कि जिनके द्वारा हमारी यह बुरी धार्मिक अन्तर होने पर भी सामाजिक दशा हुई है । सरकारी रिपोर्टोमें निम्न कार्योंमें दो जातियाँ मिल सकती हैं। उनके लिखित ४ कारण लिखे हैं:-- लिए धार्मिक भिन्नता सामाजिक-मिलन १ प्लेग,
असंभव नहीं बनाती । किन्तु यह बात तो २ हिन्दुओंमें मिल जाना,
शताब्दियोंसे चली आई है और ऐसा तो ३ आर्यसमाजी हो जाना, मालूम नहीं होता कि इन पिछले दश वर्षों में ४ नाशमान धर्म ।
ही कोई ऐसी विशेष बात हुई हो कि जिसहम इन पर पृथक् पृथक् विचार करेंगे। के कारण जैनोंने जैनधर्म छोडकर हिन्द
१ प्लेग-पिछले दश वर्षोंमें प्लेगका धर्म ग्रहण कर लिया हो। वरन् जैसा अधिक जोर रहा और उसके कारण बहत- पहले लिखा जा चुका है १९११ में तो से मनुष्योंकी मृत्यु हुई । यह सच है परन्त १९०१ की अपेक्षा अधिक जैन हिन्द न सब ही जातिओंके लिए कोई कारण नहीं लिखे जाकर जैन लिखे गये थे । और यदि कि प्लेगने दूसरी जातियोंकी अपेक्षा जैन यह भी मान लिया जाय कि सामाजिक मेल जातिको ही अपना शिकार बनाना अधिक इन दिनों बढ़ गया है तो भी यह कदापि पसंद किया हो । अधिक संभव तो यह है ठीक नहीं कि इस मेलके कारण लोग कि जैनों पर इस बीमारीका औरोंसे कम अपना धर्म छोड़ देते हों । कमसे कम युक्तअसर हुआ हो; क्योंकि वे अधिक धनवान् प्रान्त और पंजाबमें तो ऐसा नहीं होता हैं और हमारे अन्य गरीब भाइयोंकी अपेक्षा और यहीं ऐसा सामाजिक मेल अधिक वे अधिक स्वस्थ स्थानोंमें निवास करते हैं। प्रचलित है । यदि यह मान भी लिया जाय तो भी २५ ३ आर्यसमाजी हो जाना—इससे प्रतिशतका बहुत थोड़ा भाग भी प्लेगके मत्थे कदाचित् जैनसमाजका हृदय बहुत दुखेगा; नहीं मढ़ा जा सकता और सच पूछिए तो किन्तु यदि निष्पक्ष होकर विचार किया भारतकी औसत वृद्धि ११. ६ प्रतिशतमें जाय तो यह बात बहुत स्वाभाविक जान ही प्लेग महाराजका प्रभाव गर्भित है। पडेगी । इसमें कोई सन्देह नहीं कि युक्त
२ हिन्दुओंमें मिलजाना-सामाजिक प्रान्त और पंजाबमें बहुतसे जैन आर्य
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