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________________ सिंहान्योक्ति। २१९ TITIATI रण रखना चाहिए कि पापका फल भविष्यमें देख सके तथा अपने मनमें उसपर क्रोधके भाव अवश्य भोगना पड़ता है, इस लिए मनुष्यको उत्पन्न न होने दे, उतना उतना उसे उन्नत दुःख आ पड़ने पर और कोई उपायकी शरण होता हुआ जानना चाहिए । लेना चाहिए । परन्तु ऐसा पाप भूलकर भी कोई भी मनुष्य जो इस लोक तथा परलोकन करना चाहिए । अपने किये हुए पाप कर्मोंसे में सुख भोगना चाहता है, उसे चाहिए कि वह ही मनुष्यको दुःख भोगना पड़ता है। इस लिए बहुत सहनशील बने । अर्थात् दुःख आपड़ने । उन दुःखोंको सहनशीलता और प्रसन्नतासे भोग पर लेशमात्र भी दुखित न हो कर लेनेमें ही उसका लाभ है, क्योंकि किसी लौकिक अपने मनमें प्रसन्नता रक्खे । अपने दुःखको उपायसेतो वह उससे छुटकारा पा ही नहीं कोई पाप संस्कारका उपभोग समझकर, अपने सकता। दुःख पहुँचानेवाले पर क्रोध न करके, उस विवेकी मनुष्यको अपना हृदय सर्वदा जाग्रत पर दया तथा प्रेम रक्खे । बुरे प्रसंग पर सहनरखना चाहिए । हृदयको इतना सहनशील शीलता धारण करना तथा उपकार करनेवाले बनावे कि चाहे आकाश टूट पड़े पर उसे लेश पर प्रेम करनेका कार्य आरम्भमें तो बहुत त्रासमात्र भी क्लेशानुभव न हो । मनुष्यको अन्य दायक जान पड़ेगा किन्तु दयासागर परमात्मा प्राणियोंकी ओरसे जो जो दुःख मिलते हुए पर विश्वास रखके, जो कोई सर्वदा इस शुभ प्रतीत हों, वे सब उसकी मंदप्रारब्धसे प्राप्त प्रयत्नको चालू रक्खेगा तो योग्य कालमें, वह हुए हैं, उनका देनेवाला तो किसी कारणसे उपयुक्त दोनों शुभ गुणोंको प्राप्त कर सकेगा; निमित्तरूप ही हुआ है, ऐसा मानना चाहिए। और उनका फलरूप वह इस लोक तथा परलोक अपने दुःख देनेवाले तथा अपने शत्रु पर, दोनों में सुखानुभव करनेको भाग्यशाली होगा । जितना जितना मनुष्य दया तथा प्रेमकी दृष्टिसे 'सांज वर्तमान' के पटेटी-अंकसे अनुवादित । सिंहान्योक्ति। ले०-श्रीयुत 'मीर' जाने कीन्हों दमन है, मत्त मतंगन मान। हाय ! दैववश सिंह सो, परोपींजरे आन ॥ परो पीजरे आन, श्वानके गन ढिग भूके। विहसें ससा-सियार, कान पै आके कूकें ॥ 'मीर' बात है सत्य, लोकमें कहिगे स्याने। का पै कैसो समय कबै परि है को जाने ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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