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________________ पुनर्जन्म। DIRMITTERTITTIMES ___२०१ बिहारी-(दौलतसे ) अब आप भी (चुन्नीका रोना) जाइए। यह घर अब मेरा है । सेठ दौलतराम मल मलकर नित्य खिजाब अजीब मसाले। मर गये। ___ सन ऐसे उजले बाल बनाकर काले ॥ दौलत०–लेकिन मैं तो मरा नहीं। ज्वानीका सा सब रंग ढंग दिखलाना। सोनेके तारों बँधे दाँत चमकाना ॥ बिहारी इसके लिए प्रमाणकी आवश्य- सपने ऐसीह हँसी हुई दैयारे। कता है । कोई गवाह है ? इस तरह छाड़कर कहाँ० ॥ दौलत०—क्यों, मेरी स्त्री गवाही देगी। दौलत० अरे मैं हँसूंगा । (दाँत निकालबिहारी-अच्छी बात है, अपनी स्त्रीको कर हँसता है) बुलाइए। (चुन्नीका रोना ) दौलत०-सुनती हो मुनुआकी अम्मा ! आकर अब मुझको कौन कहेगा प्यारी। जरा इधर आओ। लज्जा करके अब क्या होगा! बढिया ला देगा कौन दुपट्टे सारी ॥ मैं जान और मालसे जा रहा हूँ। बाहर आओ। एसेंस, लवेंडर, टूथपाउडर साबन । (रोते रोते चुन्नीका प्रवेश ।) किससे अब माँD, राम, जड़ाऊ जोशन । मैं हुई अकेली छुटे सहारे सारे। मिलकर मरते तो रंजन कुछ फिर था रे। इस तरह छोड़ कर कहाँ सिधारे प्यारे ॥ इस तरह छोड़कर कहाँ० ॥ हूँ नहीं जानती राह, भटकना होगा। दौलत-मेरी प्यारी रो मत, मैं आता हूँ। ठोकर खाकर सिर-पैर पटकना होगा॥ (चुन्नीका हाथ पकड़ता है) हे प्राणनाथ, दो दरस, तरस कुछ खाओ। चुन्नी-अरे बापरे ! यह कौन है ! पैरोंसे ठेलो नहीं, नाथ, अपनाओ॥ दौलत-मैं तुम्हारा स्वामी हूँ-तुम्हारा प्यारा मैं व्याकुल रोती यहाँ तुम्हारे मारे। हूँ-तुम्हारा नाथ, तुम्हारा प्राणेश्वर, तुम्हारा . इस तरह छोड़कर कहाँ०॥ हृदयसर्बस्व सेठ दौलतराम हूँ । देखो, जरा इधर दौलत०–नहीं नहीं, मैं पैरोंसे नहीं देखो। ठेलूँगा । आहा, कैसी सती स्त्री है ! चुन्नी-( घूघट खोलकर देखकर ) अरे (चुन्नीका रोना) बापरे ! ( मूर्छाका अभिनय करती है) दौलत०--ऐं ? यह क्या बात है ! यह कढ़ी पकौड़ी बड़े, मुँगौरी भाजी।। __ बिहारी--तू कौन पाजी है ! भले आदमीकी है सभी रसोई अभी बनाई ताजी ॥ औरतके बदनमें हाथ लगाता है ? बिधना, तूने क्या निठुर ठान ठाना है। दौलत०--यह तो मेरी ही स्त्री है। अफसोस, अकेले मुझे सभी खाना है। बिहारी-तुम्हारी! तमको न बदे थे खान-पान ये न्यारे। दौलत-हाँ! इस तरह छोड़कर कहाँ० ॥ बिहारी-तुम बड़े भले आदमी हो ! दौलत-रसोई बनाई है ? मैं भी तुम्हारे दौलत-यह मेरी स्त्री है। साथ खाऊँगा ! आहा कैसी सती लक्ष्मी है! (चुन्नीका उठना।) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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