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________________ जैनहितैषी दौलत-वह देखो, होश आगया। दौलत-किन्तु वह तो मेरी स्त्री है। चुन्नी-मैं उनके बिना नहीं जी सकती। बिहारी-यह बात तो वह खुद नहीं बिहारी-धन्य पतिव्रता! स्वीकार करती। चुनी-मैं अबला सरला विह्वला बाला- । दौलत०-ईश्वर ! (रोता है) बिहारी-आहा हा हा! बिहारी-देखिए साहब, आपको देखकर चुन्नी-दैवकी सताई दुखपाई मुरझाई- मुझे दुःख होता है। शायद आप दौलतराम बिहारी-हाय हाय! सेठ ही हों । किन्तु प्रमाण नहीं है। कानूनमें चुनी-मैं अलबेली नबेली अकेली कैसे आप टिक नहीं सकते । बतलाइए, क्या करूँ ? रह सकती हूँ! दौलत०-वही तो । स्त्रीने नहीं पहचाना, बिहारी-अकेली क्यों रहोगी मोहिनी, या मैं सचमुच मर गया हूँ, देखू । समस्या यह मायाविनी, बिहारीके जीतेजी तुमको काहेकी है कि मैं मर गया हूँ या जीता हूँ ? मैं लहरोंमें चिन्ता है ? पड़कर तूफानसे भरे संसार-सागरमें बहा-बहीं दालत०--बहारा, तुम्हारा यह हरकत . फिर रहा हूँ, या खेल खेल रहा हूँ ! मैं शेर रीछ चुन्नी-अभी मेरे पतिका पीछा हुआ है-- साँप आदिसे परिपूर्ण बनके घोर घने अन्धकारमें बिहारी-मेरी भी स्त्री अभी मरी है- रो रहा हूँ, या गाना गाता हूँ? चुटकी काटकर चुन्नी-मनकी हालत-- दे ! ( चुटकी काटता है ) लगता तो है ! बिहारी-बहुत-- सिर हिला डुला कर देखू !( वैसा ही करता दौलत०-खराब है! सो तो समझा । है) कुछ भी समझमें नहीं आता !-नहीं यह न लेकिन जीना है न मरना है। यह जीने-मरनेकी एक बिहारी- चुन्नीसे ) जाओ, अब तुम खिचडी है! कैसी आफत है! मैंने स्वममें भी भीतर जाओ ! मैं ब्याहकी तैयारी करने जाता हूँ। नहीं सोचा था कि ऐसी दशा मेरी होगी। ये (चुनीका जाना) कौन हैं ? ये तो सब मेरे सगे हैं! अच्छा , दौलत० कैसे ! ब्याह और क्रियाकर्म एक छिपकर देखू ये क्या करते हैं ! (छिपता है ) साथ ही होगा! हा जगदीश्वर ! (बाजेगाजेके साथ दौलतके नातेदारोंका प्रवेश।) _ बिहारी लाठी कहाँ है ? यह है । (लाठी १ आदमी-यहीं बैठो ? ( बैठता है) लेना) २ आदमी-हाँ, आज जरा जी भरकर दौलत०-लकड़ीकी क्या जरूरत है ? बिहारी-त्रीको वश करनेकी तैयारी में र आनन्द मनालें। (बैठता है) पहलेहीसे कर लूँ। ५०००) रुपयका गहना है। ३ आदमी- (बैठकर ) बुड्डा अब जाकर १००००) रुपये नगद तो चुन्नीके पास हैं। मरा। दौलत०-देखो, तुम मेरे बहनोई हो-वकील ..४ आमा ४ आदमी-मैं तो बहुत खुश हुआ। हो। तुम ऐसे नीच नहीं हो सकते कि मेरे जीते (बैठता है) ही मेरी स्त्रीसे ब्याह करो। . ५ आदमी---एक पैसा किसीको नहीं दिया। बिहारी-नीच कैसा ? विधवासे व्याह (बैठता है) करनेमें मुझे कोई आपत्ति नहीं है। १ आदमी--बड़ा कंजूस था ! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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