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पुनर्जन्म। ले०, पं० रूपनारायण पाण्डेय ।
जाती है।
जान
लत भागता
जाती है।
(पिछले अंकसे आगे।) १ परोसिन यह कौन है रे !
उपरोसिन-मार तो सही। रेग्नें २ परोसिन-हम क्यों निकलें रे ? (ईट उठाना ।) ३ परोसिन क्यों निकलें ?
दौलत०-अरे बापरे ! (पीछे हटता है।) ४ परोसिन-बतला तो सही !
४ परोसिन-निकल मुर्दे निकल, नहीं ५ परोसिन–मर मुर्दे !
तो सिर तोड़ दूंगी! दौलत०-(अवाक् होकर ) वाह! । दौलत०-( डरकर ) नहीं नहीं मैं
१ परोसिन-कलमुहा मर गया, अच्छा जाता हूँ। हुआ । ( बैठती है।)
५ परोसिन नहीं तो ( झाडू उठाकर ) २ परोसिन-लोगोंकी जान बची । यह झाडू देखी है ? ( बैठती है।)
दौलत०-अरे बचाओ। ३ परोसिन-दोनों लड़के पेट भर (दौलत भागता है और उसके पीछे दौड़ती खायँगे । ( बैठती है।)
___ हुई परोसिनें जाती हैं।) ४ परोसिन लडकी मगर खानेको न (दौलतकी लड़कीका प्रवेश ।) पावेगी । ( बैठती है।)
लड़की-लालाजी ! लालाजी! अम्मा रो ५ परोसिन-बड़ेको नरकमें भी जगह न रहा है।
(दौलतरामका प्रवेश।) मिलेगी। (बैठती है।) दौलत०-बैठ गई !-दौलतराम सँभलो !
दौलत-कौन रो रहा है ? तुम्हारा अस्तित्व ही मिटाया जा रहा है !
लड़की०-अम्मा। अपनेको बचाओ-नहीं तो बस मरे !-(परोसि
दौलत०-क्यों ? नौसे) निकलो हरामजादियो यहाँसे; निकलो
लड़की०-मैं क्या जान ?
(नेपथ्यमें विलाप-) निकलो! न निकलोगी? अच्छा ठहरो-(बाह- "अरे तुम कहाँ चले गये-तैयार रसोई रसे लकड़ी लाकर ) निकल जाओ, इसीम छोडकर कहाँ चल दिये-ॐ हूँ हूँ हूँ !" खैर है, नहीं तो देखो इसी लकड़ीसे
दौलत०-वाहवाह, औरत तकने मरा समझ१ परोसिन-वाह, खूब बना है!
कर रोना शुरू कर दिया! अरे मुनुआकी • दौलत०-निकलो!
अम्मा-मैं जीता हूँ । आया । ( लड़कीसे) २ परोसिन-मारेगा क्या?
चलो बेटी। दौलत०-मार डालूंगा । (लाठी घुमाते (कन्याका जाना और उसके पीछे दौलतरामका हुए ) निकलो!
जानेकी चेष्य करना।)
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