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________________ जैनधर्म और जैनजातिके भविष्यपर एक दृष्टि । उमरोंकी स्त्रियोंकी कमीकी आधी से अधिक है। इससे स्पष्ट है कि यद्यपि प्रकृति पुरुषोंसे अधिक स्त्रियाँ पैदा करती है तो भी हम उन्हें अपने बुरे बर्तावे और बुरी प्रथाओंसे मार डालते हैं । सरकारी रिपोर्ट में भी यही बात लिखी है । बुरा बर्ताव, कामकी अधिकता, स्वास्थ्य नाशक पर्दा, बालविवाह और बचपनमें ही माता हो जानेका भार, सचमुच उन्हें मार डालता है | इन रिवाजों के प्रति घोर युद्ध करना होगा । इनको जबतक हम समूल नाश न कर डालेंगे जैन जातिकी वृद्धि कदापि नहीं हो सकती । बालविवाहसे केवल स्त्रीजातिका स्वास्थ्यही नहीं बिगड़ता ; किन्तु बलहीन समाज और रोगी बालकों के होने का यही मुख्य कारण है । यह एक ऐसी प्रथा है कि जिसे हम उपेक्षा की दृष्टिसे कदापि नहीं देख सकते । किन्तु याद रखना चाहिए कि इसके नाश करनेके लिए बहुत साहसऔर बलकी आवश्यकता होती है । इसकी हानियोंको जानते हुए भी हमारे जैन भाई, शिक्षित और विद्वान् जैन नेता तक अपने बालकों की रक्षा करनेमें असमर्थ दिखलाई देते हैं। जबतक हम प्रयाग के भ्रातृमंडलके सदस्योंकी भाँति निर्भयतासे और साहस - पूर्वक नियम न बना लेंगे तबतक इस कुप्र - थाका नाश होना कठिन ही नहीं असम्भव होगा । १८ वर्ष के युवा और १४ वर्षकी कन्याका विवाह हो सकता है । इसले कम Jain Education International १८७ वयका विवाह, विवाह नहीं गुड़ियों का खेल है । उसमें हमारी सहानुभूति नहीं - हम उसमें भाग नहीं ले सकते । हो सका तो अपनी सन्तानका विवाह इससे भी अधिक वयमें करेंगे । इत्यादि बातें जबतक हम दृढ़तापूर्वक हृदयमें अंकित नहीं करलेंगे, तबतक कोई आशा करना व्यर्थ है । किन्तु केवल इन बातों से काम न चलेगा । चले भी कैसे ? जब प्रति ४ स्त्रियोंमेंसे एक विधवा है । बालविवाहके बन्द हो जानेसे कुछ दशा सुधरेगी अवश्य; किन्तु बिना विधवाविवाह के प्रचलित किये जैनजातिका जीवित रहना कठिन है । २५ वर्ष - से कम वय वाली ११,३०४ विधवाओं पर समाजके नेताओंको दया आनी चाहिए । १५ वर्षसे छोटी १,२५९ विधवाओं को देखकर तो उन्हें रोदन आजाना चाहिए । और ५ वर्ष से छोटी ९२ विधवाओंकी तुतली बोलीको सुनकर, यदि वे सच्चे नेता हैं तो प्रचलित रिवाजोंपर और उनको न बढ़लनेकी सलाह देनेवाले समाज पर क्रोध और दुःखके मारे काँप उठना चाहिए । पुरुषकी एक पत्नी बीमार होती है कि उसी समय दूसरे विवाहकी बातें पक्की होने लगती हैं । कोई पूछता है कि लाला साहब ! आपके पुत्र पौत्र सत्र मौजूद हैं, फिर अब विवाहकी क्या आवश्यकता ? कहते हैं, भाई इसके बिना काम नहीं चलता । उन्हें यह कहते लज्जा नहीं आती ! इस बातका ध्यान नहीं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522825
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size10 MB
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