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जैनहितैषी
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रहना पड़ता है। जिन जातियों में इससे भी विधवायें १,५३, २९७ हैं । अविवाहित कम संख्या हैं उनकी दशाका इसहीसे स्त्रियोंकी संख्या १,८१, ७०५ है। ३० अनुमान कर लेना होगा।
वर्षसे ऊपरकी स्त्रियोंको छोड़ दें तो १,८०, २५ वर्षसे अधिक वयकी २.०३२ ००० ऐसी स्त्रियाँ बच जाती हैं जिनका विवाह स्त्रियाँ अविवाहित हैं। इन स्त्रियों के अवि- हो सकता है । ४५ वर्षसे कम वय वाले वाहित रहनेका और कोई कारण हो ही विवाह कर सकनेवाले पुरुषोंकी संख्या ३, नहीं सकता । इस प्रश्नके हल करनेका जो ३२, ६२३ है । यदि मान लिया जाय कि भी उपाय निकलेगा उसमें प्रचलित रिवाजमें वे सब १,८,००० स्त्रियाँ विवाह कर बहुत बड़े परिवर्तन करने होंगे और छोडने- ले ( यद्यपि यह संभव नहीं है ) तो भी डेढ़ के गोत्र घटाने होंगे। जो लोग इन परिव- लाखसे अधिक पुरुष अथवा ४५. वर्षसे कम तनोंकों करनेकी इच्छा करें उन्हें किसी वय वाले पुरुषोंमेंसे २८ प्रतिशत क्वारे ही बातसे डरना नहीं चाहिए । क्योंकि रह जावेंगे । इससे कुछ पता चलता है इन रिवाजोंमें कोई धार्मिक अंश नहीं कि किस प्रकार स्त्रियोंकी कमी जैनोंकी है । धर्म ऐसा करनेके विरुद्ध उपदेश संख्या बढ़ने नहीं देती। नहीं देता । यदि ये प्रथायें धार्मिक हो तो जो लोग इस कठिनाईसे बचनेका उपाय भी आत्मरक्षाके लिए ऐसे परिवर्तन अनिवार्य सोचेंगे उन्हें इस स्त्रियोंकी कमीके कारण ढूँढने हो जाते हैं। उत्तरीय भारतके लोग इस होंगे। उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि नियमकी कडाईको भलीभाँति नहीं समझ प्रकृतिने ही इस जातिके लिए यह कठिनाई सकते; क्योंकि प्रथम तो अग्रवाल जाति उपस्थित नहीं की है। जितने लड़के पैदा बहुत बड़ी है और दूसरे जैन अग्रवालों होते हैं लड़कियाँ उनसे कम नहीं होती। और वैष्णव अग्रवालोंमें विवाह हो सकता उपरके विवरणसे ही स्पष्ट है कि पाँच वर्षहै; किन्तु मध्यप्रदेश और राजपतानेमें से कम अवस्थावाले बालकोंमें लड़कियोंये बातें नहीं है।
' की ही संख्या अधिक है । १० से २०
वर्ष तक ही प्रायः सब बालोंका विवाह स्त्रियोंकी संख्याका कम होना भी बहुत होता है और इस ही वयमें प्रायः लड़किया बड़ी कठिनाई है। सब मिलाकर वे संख्यामें मातायें बन जाती हैं और इस ही वयमें पुरुषोंसे लगभग ४०००० कम हैं । स्त्रियोंकी संख्या बहुत अधिक घटजाती है। किन्तु इस संख्यासे वास्तविक कठिनाईका इस वयके १,२८,१०५ पुरुष हैं और कुछ भी पता नहीं चलता। स्त्रियोंका चतुर्थीश १,०५,३७४ स्त्रियाँ । स्त्रियोंकी संख्या तो वैधव्यका दुःख भोग रहा है। कुल कोई २२,४३१ कम है । यह कमी सब
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