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बम्बई में भारत जैन महामण्डल ।
पाठकों को इस मण्डलका विशेष परिचय देनेकी आवश्यकता नहीं । यह सबसे पहली जैनसंस्था है जो दिगम्बर - श्वेताम्बर और स्थानकवासी इन तीनों सम्प्रदायोंको समान दृष्टिसे देखती है और तीनोंका समानरूपसे हित चाहती है । इसका यह उद्देश्य बहुत ही विशाल है और इस कारण इसके प्रति हमारी पूर्ण सहानुभूति है । हम चाहते हैं कि हमारे उक्त तीनों सम्प्रदायोंमें जो पारस्परिक द्वेष बढ़ रहा है उसको शमन करनेका यश इस मण्डलको मिले, इसके प्रयत्नसे तीनों सम्प्रदाय एक - ताके सूत्रमें बँध जाएँ और जैनजाति अपनी उन्नति करनेमें समर्थ हो ।
इस मण्डलको स्थापित हुए १६ वर्ष हो चुके । पहले इसका नाम जैनयंगमेन्स एसोसियशन था जो पीछे कई विशेष कारणों से बदल दिया गया और अब यह आल इंडिया जैन एसोसियेशन या भारत जैन महामण्डल के नामसे अभिहित होता है । पहले इसमें दिगम्बरसम्प्रदायके ही नवयुवक शामिल थे और उन्होंने इसे स्थापित किया था; परन्तु अब इसमें तीनों सम्प्रदाय के शिक्षित- विशेष करके अँगरेज़ी पढ़े हुए - योग देने लगे हैं ।
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मन्दगति से - प्रायः नहींके ही बराबर चल रहा है । अँगरेज़ी जैनगजट और जीवदयाविभाग ट्रैक्टोंको छोड़कर और कोई काम ऐसा नहीं है जिससे मण्डलके अस्तित्वका भी पता लग सके । अपनी १६ वर्षकी लम्बी आयुमें हम देखते हैं कि उसने कोई भी उल्लेखयोग्य कार्य नहीं किया है । और तो क्या उसके अधिवेशन भी प्रतिवर्ष नहीं हो सकते हैं । बम्बईका यह अधिवेशन भी कई वर्षोंके बाद हुआ है । शिक्षित कहलानेवालोंकी इतनी बड़ी - 'महा' - नामधारिणी संस्थाकी यह अलसता और अकर्मण्यता देखकर बड़ा खेद होता है और जैनजातिका निराशामय भविष्य और भी गाढ़ अंधकार से व्याप्त दिखलाई देता है |
अबकी बार महामण्डलका अधिवेशन देखनेका सौभाग्य हमें भी प्राप्त हुआ । बम्बई में कांग्रेस आदि महती सभाओं की धूमधामके कारण मण्डलने अपना अधिवेशन भी इसी मौकेपर कर डालना निश्चय किया । तदनुसार ता० ३० और ३१ दिसंबर को यहाँके एम्पायर थियेटर के सुन्दर भवनमें मण्डल की दो बैठकें हो गई । सभापतिका आसन श्रीयुक्त खुशालदास बी. ए. बी. एस. सी. बैरिस्टर एट-लाने सुशोभित किया था और स्वागतकारिणीके सभापति श्रीयुत मकनजी जूठा बैरिस्टर हुए थे ।
जैनसमाजमें अँगरेज़ी पढ़े-लिखे लोगोंकी संख्या कम नहीं है । तीनों सम्प्रदायोंमें हम समझते हैं कि ग्रेज्युएट और अंडर ग्रेज्युएटोंकी ही संख्या ५०० के लगभग होगी । मंडल के मेम्बर ही दोसौ से अधिक बतलाये जाते हैं परन्तु हम देखते हैं कि मण्डलका कार्य बहुत ही
हम पहले कह चुके हैं कि महामण्डल के प्रति हमारी पूर्ण सहानुभूति है और हम उसकी हृदयसे उन्नति चाहते हैं; परन्तु सहानुभूतिका मतलब यह नहीं है कि हम उसकी प्रशंसा ही कि
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