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________________ जैनहितैषी जायँ । नहीं; सहानुभातिके कारण उसके दोषों- बिलकुल नहीं था बाहरसे प्रतिनिधि भी नहीं की आलोचना करना भी हम अपना कर्तव्य स- बुलाये गये थे, तो भी कानूनके आचार्योंने मझते हैं । अतः इस लेखमें हम मण्डलकी इसे सारे भारतके जैनोंकी कान्फरेंसका रूप दे उन बातोंकी आलोचना करना चाहते हैं जिन दिया, स्वागतकारिणी कमेटी बनाई गई और पर ध्यान देना उसके संचालकोंके लिए बहुत जिनका मण्डलसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं था, आवश्यक है। ऐसे लोगोंकी सब्जैक्टकमेटी बनाई गई। बम्बईमें । वास्तवमें उसमें मण्डलके मेम्बरोंको छोड़कर तीनों सम्प्रदायोंके जैनोंकी टसरे लोगोंको 'बोट' देनेका आधिकार ही न संख्या ३० हज़ारसे भी अधिक समझी जाती , है । इनके सिवाय इस समय कांग्रेस आदिके होना चाहिए था । इस सब्जैक्टकमेटीकी बैठकमें ६. जो तमाशे हुए, शिक्षितोंकी जो लीलायें देखनेमें कारण बाहरसे भी सैकड़ों सज्जन आये हुए थे। ऐसी अवस्थामें मण्डलके अधिवेशनमें ७०० आई वैसी तो शायद ही कहीं दिखलाई दें। ८०० से अधिक आदमियोंकी उपस्थिति न मण्डलके कार्यकर्ताओंने जैनहितेच्छुके सम्पाहोना बतलाता है कि मण्डलकी जनसाधारणमें दक श्रीयुक्त बाडीलालजीको एक पत्र लिखा था। बहुत ही कम प्रसिद्धि है । अपने १६ वर्षके उसमें उन्होंने बम्बईमें अधिवेशन करनेकी इच्छा लम्बे समयमें वह अपनी प्रसिद्धि भी जैसी प्रकट की थी और लिखा था कि जेलमें बिना चाहिए वैसी नहीं कर सका है। उसके उद्देश्य अपराधके कष्ट भोगनेवाले पं० अर्जुनलालजी लोगोंका समझाये नहीं जाते हैं, इस कारण सेठी बी. ए. के विषयमें खास तौरसे इस अधिलोगोंका उसकी ओर प्रेमभाव नहीं है । श्वेता- वेशनमें विचार किया जायगा। श्रीयुक्त बाडीम्बर और स्थानकवासी भाई तो उससे बहुत ही लालजी आजकल ऐसे कामोंसे कुछ उदास कम परिचित हैं। अच्छे अच्छे शिक्षित भी रहते हैं; परन्तु सेठीजीके लिए कुछ उद्योग उसके विषयमें बहुत कम जानकारी रखते हैं। होगा और उन्हें न्याय मिलेगा इस खयालसे हम मानते हैं कि इसमें लोगोंडी टासीनता उन्होंने मण्डलके कार्यमें योग देना स्वीकार अज्ञानता और साम्प्रदायिक द्वेष भी कारण किया। इसके बाद उन्हें सभापतिका चुनाव हैं, तो भी मण्डलके कार्यकर्ता अपने प्रयत्नकी करनेके लिए लिखा गया और उन्होंने सेठीजीके शिथिलताके दोषसे नहीं बच सकते । वे चाहते कार्यकी महत्ता समझकर मि० खुशालदासशातो अपने आधिवेशनमें लोगोंकी संख्या इससे हको इस कार्यके लिए सुयोग्य बतलाया और अधिक एकत्रित कर सकते थे। " मि० शाहके उत्साहपूर्वक स्वीकार करनेपर कार्यकर्ताओंको स्वीकारता भेज दी । श्रीयुत ___ महामण्डलके इस अधिवेशनके कार्यकर्ता- बाडीलालजीने समझा था कि मि० शाह जैसे ओंमें कानून जाननेवाले वकील बैरिष्टरोंकी संख्या विद्वान हैं वैसे ही विचारक और साहसी भी खूब थी, तो भी इसमें बे-कानूनी कार्रवाइयाँ है; परन्तु उनका यह समझना केवल भ्रम था। इतनी हुई हैं जितनी साधारण लोगोंकी सभा- सब्जैक्टकमेटीमें जब सेठीजीका प्रस्ताव उप ओंमें भी नहीं होती हैं। मण्डलका यह एक स्थित किया गया, तब मि० शाहने स्वयं उसे वार्षिर्क अधिवेशन था-इसमें प्रतिनिधि-तत्त्व पढ़कर सुना दिया और न जाने क्या समझकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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