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जनहितैषी
के हम दास हैं । हम भलीभाँति जानते हैं इस समय हमारी स्थिति सच पूछो तो कि ये रीति रिवाज हमें नुकसान पहुंचा रहे बहुत अच्छी है । कुछ समयसे हम विचार हैं; परंतु हममें उनको दूर करनेकी हिम्मत ही भी करने लगे हैं। शिक्षाप्रचार और व्यानहीं है। हमारा सामाजिक संगठन बिल्कुल पार
म पारमें भी थोड़ा बहुत उद्योग होने लगा है । सड़ गया है । दुर्व्यसनके पंजेमें हम इतने ,
२ सबसे बड़ी भारी फ़ायदेकी बात तो यह है
' कि हम अँगरेज़ जातिके शासनमें हैं। परफस है कि हमार नवयुवक मा लकार मात्माकी बड़ी भारी कृपा है कि हम दुनिसहारे बिना नहीं चल सकते । स्त्रियोंको याकी सबसे बढ़ी चढ़ी जातिके शासनमें हैं। तो हमने पशुओंसे भी नीच बना रक्खा है। भारत और इंग्लेंडका संबंध-इससे बढ़कर अज्ञानके अंधकारमें हम डूबे हुए हैं । जिस सम्बन्ध तो हो ही नहीं सकता। हमारा कर्तव्य तरफ़ देखो दुर्दशा मुँह बाये खड़ी दीखती है। है कि अगरेज़ोंके सहवास और शिक्षामें रहकर ऐसी हालतमें हमारा क्या कर्तव्य है ? अपनेको सुधारें । यदि हमने इस समय भी
उन्नति न की, तो फिर ऐसा मौका न मिलेगा। सुखसे दुःख और दुःखसे सुख यह प्र
हमें यह भलीभाँति याद रखना चाहिए कि त्येक मनुष्यका अनुभव है । इतिहास भी
" ब्रिटिशकी जड़ न्याय है। अँगरेज़ोंका उद्देश्य इस बातका साक्षी है कि किसी भी जातिके
' है कि वे हमारी गिरी हुई जातिको उबारेंगे। सब दिन सरीखे नहीं हो सकते । उन्नतिके
ब्रिटिश राज्यनीतिज्ञ भली भाँति जानते हैं बाद अवनति और अवनतिके पश्चात् उन्नति,
! कि इंग्लैंड द्वारा हिन्दुस्तानका उत्थान, यह यह सृष्टिका नियम है । जिस अदृष्टने हमें
बात दुनियाके इतिहासमें सोनेके अक्षरोंमें आज तक जिलाया है उसी अदृष्टके भरोसे,
' लिखी जायगी । हमें राज्यप्रबन्धकी छोटी उसी भविष्यकी आशाके भरोसे हमें कर्तव्य -
तव्य छोटी बातों पर आधिक ध्यान न देना चाकरते रहना चाहिए । सघन जंगलमें रास्ता ,
म त हिए । ब्रिटिश जातिके हम ऋणी हैं । हमें भूले हुए मनुष्यका एक मात्र सहारा आशा
इस समय शक्ति भर प्रयत्न करना चाहिए ही है। इस समय निराशा और निरुत्साह- .
- और ब्रिटिश जातिके गुणोंको सीखना की हवा हमें अपने हृदयमें नहीं लगने , देनी चाहिए । कई आलसी मनुष्य समयके । फेरको ही रोते हैं और भविष्यको निराशा- देशाभिमानका मतलब अपने गिरे हुए मय बताते हैं। यथार्थमें ये लोग जैसा देख जीवनका पुनर्सस्कार है, अपने बल-मानसिक रहे हैं वैसा ही बता रहे हैं । निरुद्योगी मनुष्यों- शारीरिक और नैतिक-को बढ़ाना है, समाजने कब कब आशाका सहारा लिया है ? संस्कार, शिक्षाविस्तार, राजकीय आन्दोलन,
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