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जैन सिद्धान्तभास्कर |
( समालोचना )
विक्रमादित्य संवत् ।
यह पाँच पृष्ठका लेख श्रीयुक्त बाबू परेशचन्द्र वन्द्योपाध्याय एम. ए. का लिखा हुआ है और अपूर्ण है । जबतक यह पूरा प्रकाशित न हो जाय, तबतक इसके विषयमें विशेष कुछ नहीं कहा जासकता । इसमें यह सिद्ध करनेका प्रारंभ किया गया है कि विक्रमादित्य वास्तव में हुए हैं और उन्होंने शकोंको पराजित करके सासे ५७ वर्ष पहले अपना संवत् चलाया है ।
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शाका सम्वतकी उलझन । दूसरी तीसरी संयुक्त किरणका यह लेख १६ पेजका है; परन्तु अपूर्ण है । आगे पूरा होगा या नहीं, भगवान् जानें। चौथी किरणमें तो सम्पादक महाशयने इसे पूरा करनेकी कृपा नहीं की, रही आगेकी किरणें, सो कब निकलेगीं, इसका अनुमान करनेका हम जैसे इति - हासानभिज्ञको अधिकार नहीं । इस लेखका नाम तो है, ‘शाकासंवत्की उलझन '; परन्तु इसमें विचार किया गया है ' विक्रमसंवत् ' पर ऐसा क्यों किया गया, यह शायद लेखके शेष भागमें बतलाया जाय । इस लेखमें अनेक देशी विदेशी विद्वानोंके मत देकर यह लाया गया है कि विक्रम या विक्रमादित्य नामका कोई राजा जिसने कि विक्रमसंवत् चलाया हो ईसासे ५७ वर्ष पूर्व या अबसे लगभग १९०० - २००० वर्ष पहले हुआ ही नहीं है । कुछ राजा ऐसे अवश्य हुए हैं जिन्होंने
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विक्रमकी उपाधि धारण की थी; परन्तु वे बहुत पीछे हुए हैं । इसके सिवाय आज तक जितने प्राचीन शिलालेख, दानपत्र, आदि मिले हैं, उनमें एक भी ऐसा नहीं है जिसमें विक्रम संवत्की शुरूकी छह सात शताब्दियों का उल्लेख हो । सबसे पहला लेख विक्रम संवत् ८९८ का है जिसमें संवत् के साथ विक्रमपद जुड़ा हुआ है। जब कि चन्द्रगुप्त, अशोक, कनिष्क, हुविष्क, खारवेल आदि प्राचीनसे प्राचीन राजाओं के लेख और उल्लेख मिलते हैं तब क्या कारण है कि विक्रमका उल्लेख नहीं मिलता ? उनका उल्लेख नहीं मिलता है, इससे मालूम होता है कि ईसवी सन्से ५७ वर्ष पहले कोई विक्रमादित्य नामका राजा हुआ ही नही । प्रो० मेक्समूलरका मत है कि उज्जैनीके राजा हर्ष विक्रमादित्यने ईस्वी सन् ५४४ में कोरूरके युद्धमें म्लेच्छौको हराकर उस विजयके उपलक्ष्यमें अपना संवत् चलाया और इस नव स्थापित संवत्को उन्होंने ६०० वर्ष पहले माननेके लिए सबको बाध्य किया । कोई कहते हैं कि चन्द्रगुप्त द्वितीय ही विक्रमादित्य था । किसीका मत है कि मालवगणका संवत् ही पीछे बदलकर विक्रम कर दिया गया । पर ईसाकी पाँचवीं छठी शता
ब्दिके पहले विक्रमादित्यको मानने के लिए कोई भी तैयार नहीं । सम्पादक महाशयको भी यही मत पसन्द है । वे लिखते हैं- “ हम यह अवश्य कहेंगे कि इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं कि विक्रमादित्य ईसाकी छठी शताब्दिमें राज्य करते थे । इनके सामयिक बड़े बड़े कवि और
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