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________________ ३ .NETITIATILIAALILITr पी जैनहितैषी iftiinfinitiiiiii लेखकोंने जो अपने अपने महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिख हैं, संभव है कि आगे कोई न कोई बलिष्ठप्रमाण छोड़े हैं वे आज बड़ी पूज्य श्रद्धासे समाहत मिल जावे और विक्रमादित्यका ठीक समय होकर पढे जाते हैं।" इस विश्वासके कारण निश्चित हो जाय । अनेक विद्वान् इस समस्यापर जिन एक दो विद्वानोंने विक्रमको ईसाके ५७ विचार कर रहे हैं और सफलताकी ओर बहुत वर्ष पहले सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है. उन- कुछ अग्रसर भी हुए हैं। का नाममात्र खण्डन भी सम्पादक महाशयने भगवजिनसेनाचार्य और कर दिया है। पर हमारी समझमें विक्रमका अस्तित्व ईसासे ५७ वर्ष पहले सिद्ध करनेमें जो असफ कविवर कालिदास । लता हो रही है उससे कहीं अधिक असफलता भास्करकी प्रथम किरणमें सम्पादक महाशविक्रमको अपने समयसे सौ दो सौ या छह सौ यने यह लिख मारा था कि जिनसेन और वर्ष पीछे ले जानेमें हो रही है। इस बातका ठीक कालिदास समकालीन थे और कालिदासको ठीक उत्तर कोई भी नहीं देता है कि जिस नीचा दिखलानेके लिए जिनसेनने मेघदूतपिछले राजाने अपनी यादगार कायम रखनेके वेष्टित पार्श्वभ्युदयकी रचना की थी। वास्तलिए अपने नामके संवत्को छह सौ वर्ष पहलेसे वमें यह एक भ्रम था, इस लिए सहयोगिनी शुरू किया, उसने इसमें क्या लाभ सोचा होगा सरस्वतीक सुविज्ञ सम्पादकने एक लेख लिखकर और उसकी इस आज्ञाको सारे देशने मान कैसे बतलाया कि यह निर्मूल कल्पना है। जिनसेन लिया होगा ? और इतना बड़ा पराक्रमी राजा और कालिदास समसामयिक हो नहीं सकते। ऐसे झूठे कृत्यमें प्रवृत्त ही क्यों हुआ ? उस परन्तु इतिहासके महासागर सेठजी यह कैसे समयके पहलेके और पीछेके अनेक राजाओंने मान लें कि उनके गंभीर मस्तकमें रत्नोंके सिवाय अपने अपने संवत् अपने समयसे चलाये कूड़े कर्कटको भी स्थान मिल सकता है ? बस, थे, फिर अकेले उसीने ऐसा क्यों आपकी बुद्धिका ज्वार आगया और उसके किया ? इसमें उसको लाभ क्या था ? परिणामरूप यह लेख प्रकाशित होगया । इसयदि कोई कहे कि अपना संवत् प्राचीन कहलाने में आपने यह बतलाया है कालिदास नामके लगे इस इच्छासे उसने ऐसा किया होगा, तो कई कवि हुए हैं । एक कवि विक्रमायह ठीक नहीं । यह कोई भी बुद्धिमान् दित्यकी सभाका रत्न बतलाया जाता है; परन्तु और यशोभिलाषी राजा नहीं चाह सकता कि विक्रम नामके किसी राजाका छठी शताब्दिके मुझे लोग मेरे समयसे छहसौ वर्ष पहले मानने पहले पता ही नहीं लगता । अत एव कालिदास लगें। इससे तो उलटी उसकी वर्तमान कीर्तिका भी छठी शताब्दिके बादका कवि है। पाठकोंको घात होता है। जब तक इस शंकाका समाधान यह बात ध्यानमें रखनी चाहिए कि इसके पहन हो जाय, तबतक विक्रमादित्यका समय लेका विक्रम संवत् सम्बन्धी लेख भी इसी अभिआजसे १९७२ वर्ष पहले ही मानना पड़ेगा। प्रायसे लिखा गया है कि कालिदासको किसी आज यदि शुरूकी शताब्दियाके विक्रमसंवत्- तरह ईस्वी सन्के पहलेका सिद्ध न होने दिया सूचक लेख या ग्रन्थादि नहीं मिलते हैं तो जाय। कालिदासके समयनिर्णयके सम्बन्धमें क्या हुआ ? खोजें हो रही हैं, अन्वेषण हो रहे आपने देशी विदेशी ३४ विद्वानोंके मतोंका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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