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________________ KUNDAMAm A ILY अप्रतिष्ठित प्रतिमा पूज्य है या नहीं? प्रतिष्ठा की, इसका सामान्य अर्थ स्थापित करना, विराजमान करना, होता है। ऐसे शब्दोंको देखकर यह ख़याल कर लेना कि ये प्रतिष्ठापाठकी विधियोंके हम यह कहनेमें, कि अप्रतिष्ठित प्रतिमा भी अनुसार प्रतिष्ठित की गई हैं, ठीक न होगा । उपलब्ध पूज्य है, कुछ हानि नहीं देखते। प्रतिष्ठापाठ ग्याहरवीं बारहवीं शताब्दि के पहलेके नहीं हैं। परन्तु इनका बारीकीसे अध्ययन करनेसे मालूम हो ___७-अकृत्रिम प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा नहीं सकता है कि ये किन ग्रन्थोंके आधारसे बने हैं होती। और इनके पहले प्रतिष्ठायें किस विधिसे होती थीं। इस विषयका निर्णय करनेवालोंको श्वेताम्बर सम्प्रऊपर जिस विषयकी चर्चा की गई है दायके और वैदिक सम्प्रदायके प्रतिष्ठापाठोंका भी वह बिलकुल नया है और जहाँतक हमें तुलनात्मक पद्धतिसे अध्ययन करना चाहिए । विश्वास है हमारे भाइयोंको यह पसन्द भी आश्चर्य नहीं जो बौद्धसम्प्रदायके भी प्रतिष्ठापाठ रहे न आयगा।पर हमने इस विषयको इस लिए हों और शायद अब भी मिलते हों। प्रतिष्ठापाठ अधिक पुराने नहीं मिलते हैं, केवल इसी कारण यह नहीं चर्चाया है कि इसमें जो कुछ कहा गया समझ लेना कि ग्यारहवीं शताब्दिके पहले प्रतिष्ठाहै वह सब निर्धान्त है। केवल एक विषयपर विधि नहीं थी, या प्रतिष्ठायें नहीं होती थीं, निर्धान्त अपने विचार प्रगट किये हैं। समाजके वि- नहीं हो सकता। हाँ, यह संभव है कि इन प्रतिष्ठा. द्वानोंसे प्रार्थना है कि वे इसकी विशेष चर्चा . पाठोंके पहले जो प्रतिष्ठायें होती होंगी, वे इतने आडम्बरसे न होती होंगी और विधि भी इतनी जटिल न होगी । इस विषयका खास तौरसे अध्ययन करनेवालोंके द्वारा और भी अनेक बातोंचाहिए। का पता लग सकता है। तीर्थंकरोंकी प्रतिमाओंमें पहले चिह्न थे या नहीं, नहीं तो इनका प्रचार कबसे • सम्पादकीय नोट-इस लेख पर विद्वानोंको हआ, पार्श्वनाथकी प्रतिमापर फण और आदिनाथकी विचार करना चाहिए। इसके लिए बड़े परिश्रमकी और प्रतिमापर लम्बे स्कन्धपर्यन्त लटकते हुए केश, ये छानबीन करनेकी ज़रूरत है। मथुराकी जनप्रतिमायें कचसे बनना शुरू हुए, यक्षयक्षियोंकी मूर्तियोंका सबसे अधिक पुरानी हैं। वे लगभग १८०० वर्षे पहलेकी बनना अरहंतकी प्रतिमाओंके साथ कबसे चला, हैं । उनपर जो लेख हैं, उनमें प्रायः यह लिखा हुआ मथुरामें जो आयागपट मिले हैं, वे क्या हैं, उनका है कि अमुकके उपदेश अमुकने प्रतिमा बनवाई प्रचार पीछे क्यों न रहा, उनके साथ जो नग्न स्त्रियोंया स्थापित कराई। यह किसी भी लेखसे स्पष्ट नहीं की मूर्ति रहती थीं, सो क्या हैं, आदि । आशा है होता कि उनकी प्रतिष्ठा करवाई गई। एक बात और कि विद्वानोंका ध्यान इस ओर जायगा और उनके है जिसका खयाल इस विषयपर विचार करते समय द्वारा पं. उदयलालजीके खड़े किये हुए इस प्रश्नरखना चाहिए । प्रतिष्ठित कराई, या प्रतिमाकी का यथार्थ निर्णय हो जायगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522822
Book TitleJain Hiteshi 1916 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1916
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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