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जैनहितैषी
कोई साल संवत् नहीं और जो बहुत समयसे हुआ कहा जाय तब तो अप्रतिष्ठित प्रतिमा भी अबतक पूजी जा रही हैं। जैसे बड़वानीमें पूज्य ठहर ही जायगी और यदि यह कहा बावनगजाकी प्रतिमा और कुंडलपुर जाय कि उन्हें पुण्यबन्ध नहीं हुआ तो यह ( दमोह) के पहाड़में उकेरी हुई महावीर बात जैनधर्मके सिद्धान्तसे विरुद्ध पड़ती है। भगवान्की प्रतिमा।
क्योंकि उसकी तो सारी इमारत ही भावोंपर २-जमीनमेंसे कई प्रतिमायें ऐसी निकल- खड़ी हुई है और इससे कोई इंकार नहीं ती हैं जिनपर कोई संवत् वगैरह नहीं होता कर सकता । और जिन्हें अधिक श्रद्धाल लोग चौथे काल- ४-प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित प्रतिमाको की बतला देते हैं। हमारे विश्वासके अनसा- पूजनसे प्रतिमाके सम्बन्धसे जो भाव होते हैं.. र ऐसी प्रतिमायें अप्रतिष्ठित ही पूजी उन भावामें कोई अन्तर नहीं जान पड़ता। जाती थीं।
५-यशस्तिलके आठवें अध्यायमें एक __३-शास्त्रोंमें यह लिखा बतलाया जाता जगह लिखा हुआ है किहै कि कोई अप्रतिष्ठित प्रतिमा हो और यह
यथा पूज्यं जिनेन्द्राणां |
रूपं लेपादिनिर्मितम् । मालूम न हो कि वह अप्रतिष्ठित है, और सौ
तथा पूर्वमुनिच्छायाः वर्षतक बराबर पुजती चली जाय तो फिर वह पूज्याः संप्रति संयताः ॥ भी पूज्य हो जाती है । हमारे विश्वासके अ- इसका मतलब यह है कि जैसे लेप आदि नुसार यह अप्रतिष्ठित प्रतिमाके साथ सौ वर्ष द्वारा बनी जिनभगवान्की प्रतिमा पूज्य है, तक पुजते रहनेका सम्बन्ध पीछेसे जोड़ा उसी तरह प्राचीन कालके मुनियोंकी छायागया है। पहले अप्रतिष्ठित प्रतिमा भी पूजी को धारण करनेवाले इस समयके मुनि भी जाती थी। यह आग्रह ही न था कि प्रति- पूज्य हैं। इसमें लेपकी बनी प्रतिमाका जिकर ष्ठित प्रतिमा ही पूजी जाय । यदि ऐसा न है। हमारी समझमें लेप प्रतिमासे भीतोपर हो तो बड़ी भारी बाधा आकर उपस्थित होती चित्रकारीकी बनी हुई प्रतिमासे ग्रन्थकारका है। कल्पना कीजिए कि किसीने एक अप्रति- मतलब है। क्योंकि लेप-प्रतिमाका ष्ठित प्रतिमाका पूजना भूलहीसे आरंभ कर बनना इसी रूपसे संभव हो सकता है। दिया । वह प्रतिमा कोई चालीस पचास वर्ष- तब ऐसी प्रतिमाओंकी भी प्रतिष्ठाविधि होगी तक पुजती चली गई । तब यह बतलाइए यह हमारे ध्यानमें कम आता है* | हम तो कि चालीस वर्षतक जिन जिन लोगोंने उस -
१ परन्तु प्रतिष्ठापाठोंमें कागज आदिपर बनी हुई प्रातमाका पूजा उन्ह उनक भाक्त मानक प्रतिमाओं ( चित्रों ) की भी प्रतिष्ठाविधि मौजूद है अनुसार पुण्य-बन्ध हुआ या नहीं ? यदि
-सम्पादक।
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