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________________ ७५२ जैनहितैषी ४ मलमलके पिछौरा, १० लेम्पकी बत्तियाँ ५ गज, १० मोमबतियाँ, १ बहुत बढ़िया लालटेन, १० छटाया (?), १ छाता, कुछ फुटकर चीजें, इस तरह सामान निकला । इनकी पेटियाँ भेलसा, रतलाम, चंदेरी, चन्दरादिमें भी पड़ी हैं। एक जगह एक घड़ी १० रुपयेमें गिरवी रक्खी थी । इनका चरित्र हमारे देशमें सब अच्छी तरहसे जानते हैं । ये परदेशसे चीजें ला-लाकर अपने भाईको भेजते हैं। " छारोरावाले लिखते हैं-" यहाँ ऐलकजी वैशाखवदी ७ को पधारे । उन्होंने मुन्नालालनीकी पेटियाँ खुलवाई। उसमें १ घड़ी आफिस क्लाक, ३ घड़ियाँ जर्मन सिलवरकी, १ घड़ी चाँदीकी, १ चशमा, १ लोटा, १३ पिछौरा, २ मच्छरदानी, ४ टुकड़े गजीके, २५ सुइयाँ, १० तागे गोटेके, २ डिब्बियाँ मोती वगैरहकी खाक, २ शीशी पौष्टिक दवाइयोंकी, २ चमचे, १ कमंडलु तांबेका, १ बालटी, १ बेलन, १ गठी ( ? ), १ झारी, १ काच, १ खुरजी, केशर ५ तोला, १ सवरानी(?),१५ मलमलके पिछौरा, ४साटनके चंदोबा, ४९॥रुपये नकद। ये सब चीजें दो पेटियोंमें थीं। शेष पाँच पेटियाँ शास्त्रोंसे भरी हुई थीं।" इन दोनों चिट्टियोंमें लिखा है कि जैनहितैषीमें जो समाचार प्रकाशित हुआ है, वह असत्य है-सत्य तो यह है, जो हम लिखते हैं । इस पर हमारा निवेदन यह है कि पं० मूलचन्दनीने जो दो हज़ार रुपयेके नोटोंकी बात कही थी, संभव है कि उन्होंने बढ़ाके कही हो । वे स्वयं भी एक प्रकारके त्यागी हैं और भट्टारकके शिष्य हैं, इसलिए कुछ आश्चर्य नहीं जो अपने सहव्यवसायीको अधिक नीचा दिखलानेके लिए उन्होंने उक्त बात स्वयं ही गढ़ ली हो । परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि क्षुल्लक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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