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________________ विविध-प्रसङ्ग। ७५१ भी इन पंचोंका अनुकरण करेंगे और अपने प्रान्तके ऐसे ही भट्टारकों द्वारा लुटते हुए भोले भाइयोंकी रक्षा करनेका पुण्य सम्पादन करेंगे ? यदि बाकायदा प्रयत्न किया जाय और कुछ प्रतिष्ठित पुरुष भी इस प्रयत्नमें योग देवें, तो जितने अयोग्य असदाचारी भट्टारक हैं वे सरकारकी आज्ञासे बहुत जल्दी निकलवा दिये जा सकते हैं। जिस तरह चोर और डकैतोंसे प्रजाकी रक्षा करना सरकारका कर्तव्य है उसी प्रकार धर्म-चोरों और ठगोंसे बचाना भी वह अपना कर्तव्य समझती है, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है। २ त्यागी मन्नालालजीकी मालकी पेटियाँ। गत अंकमें हमने 'तेरहपंथियोंके भट्टारक ' शीर्षक नोटमें पं० मूलचन्दजीके कथनानुसार लिखा था कि त्यागी मुन्नालालजीकी एक पेटीमें जिसे वे किसी गाँवके मन्दिरमें रख गये थे दो हज़ार रुपयेके नोट निकले । इस विषयमें जैनमित्रके दफ्तरमें छारोरा और मुंगावलीके पंचोंकी सहीसे दो पत्र आये हैं। मुंगावलीवाले लिखते हैं-" गत वैशाखवदी १३ को ऐलक पन्नालालजी मुंगावली आये थे। उन्होंने दूसरे दिन बाजारके मंदिरमें त्यागी मन्नालालजीकी रक्खी हुई पेटियाँ खुलवाई । देखा तो ३ पेटियोंमें और ३ कनस्तरोंमें शास्त्र भरे हुए थे । एक पटी कपड़ोंसे भरी हुई थी। २ कैंचियाँ, १ लोटा, २ पीतलके कमंडल, १ चंदोबा, २ कुरते चिकन और कश्मीराके, १ मच्छरदान, २ पिछौरा, २ मखमलके टुकड़े, रेशमी छींट २ गज, १ तकिया, १ पीतरकी पीछी, मोरके पंख २॥ सेर, १ चमचा, १ कटोरी, १ खुरजी, १ सदरी, १ कुरता, १ गामठीकी दुहर, ३ मलमलके टुकड़े, ३ लट्टेके टुकड़े, धूमास १ हाथ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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