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________________ विविध-प्रसङ्ग। ७५३ मुन्नालालजीने अपने वेष और त्यागको रुपया कमानेका ही जरिया बना रक्खा है । मंगावली और छारौराकी पेटियोंके समान और न जाने कहाँ कहाँ उनकी पेटियाँ रक्खी होंगी । उनमें दो हजारके नोट भले ही न हो; परन्तु माल तो दो हज़ारसे कमका न होगा। जब उक्त पेटियोंमें भरे हुए शास्त्र बेचे जावेंगे, तब क्षुल्लकजीके कुटुम्बका दरिद्र दूर हो जायगा! आशा है कि हमारे भोलेभाई अब ऐसे त्यागी महात्माओंसे सावधान रहेंगे । इनके बाहरी आचरणको देखकर ही भक्तिगद्गद न हो जाना चाहिए, इनके भीतर भी टटोलना चाहिए कि क्या है। ३बिनैकया भाइयोंका प्रार्थनापत्र । गत मार्गशीर्षमें भोपाल स्टेटके बाडी मुकाममें एक बिम्बप्रतिष्ठा हुई थी । उसमें जैनहितैषिणी सभा नरसिंहपुरके कुछ उत्साही सभासद और पं० दीपचन्दजी परवार गये थे । उक्त प्रान्तमें अज्ञानान्धकार फैला हुआ है । हज़ारों आदमी ऐसे हैं जो यह नहीं जानते कि सभा क्या चीज़ है। इन सज्जनोंने किसी तरह सभा आदिका प्रबन्ध किया और चार दिनतक खूब व्याख्यान दिये। व्याख्यानोंका प्रभाव पड़ा और एक पाठशाला खोलनेके लिए २५०० वार्षिक चन्दा हो गया । एक दिनके व्याख्यानमें पं० दीपचन्दजीने कहा कि जैनधर्म जीवमात्रका धर्म है । नीच ऊँच आदि सभी उसको पालन कर सकते हैं। चाण्डालोंने भी इस धर्मको धारण करके वर्गप्राप्ति की है । इसलिए इसका प्रचार सर्वत्र करना चाहिए। इत्यादि । जिस दिन यह व्याख्यान हुआ उसी दिन वहाँके कुछ नैकया भाइयोंने एक प्रार्थनापत्र पण्डितजीके हाथमें दिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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