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________________ -~mmmmmmmm पुस्तक-परिचय। ७३१ ~~~~~mmmmmmmmmmmmmmmm लिए श्वेताम्बर सम्प्रदायके विद्वानोंको अवश्य प्रयत्न करना चाहिए। बहुतसे विद्वानोंका खयाल है कि कुमारपाल परम आहत नहीं, किन्तु परम माहेश्वर थे । जैनधर्मसे उनकी सहानुभूति थी और जैनोंके प्रति उनका सद्भाव था, बस इसी कारण जैन विद्वानोंने उन्हें परम आर्हत लिखा है । इसका उल्लेख गुजरातीके प्रसिद्ध लेखक केशवलाल हर्षदराय ध्रुवने अपनी · प्रियदर्शना' नाटिकाकी भमिकामें किया है और स्मिथके Early History of India की साक्षी दी है। ऐसी शंकाओंपर उक्त चरितमें अच्छी तरह विचार होना चाहिए । पुस्तक निर्णयसारमें छपी है और उस पर कपडेकी सुन्दर जिल्द बँधी हुई है । सब मिलाकर लगभग पौने तीन सौ पृष्ठ हैं । इतने पर भी मूल्य सिर्फ छह आना है जो शायद लागतसे भी कम होगा । प्रकाशकोंकी उदारता प्रशंसनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। इतिहासज्ञोंको इस पुस्तकका संग्रह अवश्य करना चाहिए। स्वामी दयानन्द और जैनधर्म । लेखक, पं. हंसराजजी शास्त्री पञ्चनदीय । पृष्ठसंख्या १५० । मूल्य आठ आना । मिलनेका पता-आत्मानन्द जैन सेन्ट्रल लायब्रेरी, बाजार जमादार, अमृतसर ( पंजाब )। आर्यसमाजके संस्थापक स्वामी दयानन्दजी सरस्वतीने अपने प्रधान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाशके बारहवें समुल्लासमें जैनधर्मकी चर्चा की है और उसमें जैनधर्मके सिद्धान्तोंका केवल खण्डन ही नहीं किया है, किन्तु उसपर अनेक जघन्य दोषारोपण करके उसको बदनाम करनेकी कोशिशकी है। इस पुस्तकमें पं० हंसराजजीने उस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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