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________________ जैनहितैषी जन्म हुआ था । ११९९ में वे राजासंहासन पर बैठे और १२३०. में उनकी मृत्यु हुई। उनके द्वारा गुजरातमें जैनधर्मकी बडे उन्नति हुई, जीवदयाका बहुत विस्तार हुआ, मांसभक्षण, यज्ञमें पशुवध आदिका सर्वथा निषेध हो गया और प्रजाकी आशातीत सुखवृद्धि हुई । श्वेताम्बरसम्प्रदायके प्रसिद्ध विद्वान् हेमचन्द्राचार्यको उन्होंने अपना गुरु माना था और उनकी प्रेरणासे उन्होंने जैनधर्मकी उन्नतिके लिए बहुत कुछ किया था । इस पुस्तकमें इन्हीं कुमारपाल महाराजका चरित है जो श्रीजिनमण्डन गणिके वि० स०.१४९९ में रचे हुए संस्कृत कुमारपालप्रबन्धके आधारसे लिखा गया है । यद्यपि काव्यशैलीसे लिखे जानेके कारण इसमें अत्युक्तियाँ बहुत हैं, तो भी ऐतिहासिक दृष्टि से यह बहुत महत्त्वका ग्रन्थ है । मुनि महाराजकी हिन्दी उतनी अच्छी नहीं है जितनी कि होनी चाहिए, तो भी उनका परिश्रम अभिनन्दनीय है। पुस्तकके प्रारंभमें मुनि जिनविजयजी महाशयकी लिखी हुई लगमग ५० पृष्ठकी प्रस्तावना है जो बहुत योग्यतासे लिखी गई है और जिससे सारी पुस्तकका आशय मालूम हो जाता है । प्रस्तावनाकी भाषा भी अच्छी है। उससे मालूम होता है कि महाराज कुमारपालके विषयमें बीसों ग्रन्थोंकी रचना हुई हैं जिनमेंसे १२ ग्रन्थ तो उपलब्ध हैं। इनमेंसे दो गुजरातीमें, एक प्राकृतमें और शेष ९ संस्कृतमें हैं। आवश्यकता है कि इन सब ग्रन्थोंका अध्ययन करके और उस समयके भारतके इतिहासका अध्ययन .करके कुमारपाल महाराजका विश्वस्त ऐतिहासिक चरित लिखा जावे । इसके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522809
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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