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________________ विविध-प्रसङ्ग । ६६३ कामकी तबतक प्रशंसा नहीं हो सकती है जबतक कि उसका हिसाब किताब साफ न हो, उससे सर्वसाधारण लाभ न उठा सकें और उसमें क्या होता रहता है इसका समय समयपर लोगोंको ज्ञान न कराया जाय । संस्थाकी कोरी प्रशंसाओंसे, उसका काम इतने महत्त्वका है, ऐसा है, वैसा है आदि कहने से और आक्षेप करनेवालों पर अप्रसन्न होनेसे कोई भी संस्था जनसाधारणकी सहानुभूति प्राप्त नहीं कर सकती है । बाबू देवेन्द्रप्रसादजी और बाबू किरोड़ीचन्द्रजीको इस ओर ध्यान देना चाहिए और बातें बनाना छोड़कर काम करके दिखलाना चाहिए । क्या हम पूछ सकते हैं कि भवन जो सूचीपत्र बना रहा है वह कितना बड़ा बनेगा और उसमें क्या क्या बातें रहेंगी ? डाक्टर भाण्डारकर आदिकी जैसी रिपोर्टें छपी हैं और उनमें जिस ढंगसे प्रत्येक ग्रन्थका मंगलाचरण, प्रशस्ति, ग्रन्थकर्ताका परिचय आदि दिया है वैसा ही सूचीपत्र आप बनायँगे या और किसी तरहका ? यह भी बतलाइए कि वह कमसे कम कितने वर्षोंमें बनेगा और अभी उसके बनानेका प्रारंभ भी हुआ है या नहीं ? इन बातोंके प्रकट किये बिना समाज आपके इस हौएका स्वरूप न समझ सकेगा । हमने तो इसे खूब समझ लिया है और निश्चय कर लिया है कि यह केवल लोगोंको बातोंमें खुश रखनेके साधनके सिवाय और कुछ नहीं है । वास्तवमें आपके भवनमें कुछ भी नहीं हो रहा है । वहाँ कोई पत्रोंका उत्तर देनेवाला भी नहीं है । अभी. यहाँसे पं० उदयलालजी काशलीवालने हरिवंशपुराणसंस्कृतके मँगानेके लिए जो भवनमें मौजूद है - पत्र लिखा 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522808
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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